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________________ श्रात्मज्ञान कब होता है ? १७६ जीवन के लिए आर्थिक विकास जरूरी है । लेकिन, वह जीवन का ध्येय नहीं हो सकता । जीवन का ध्येय तो केवल आत्मकल्याण है और उसके लिए आत्मज्ञान की जरूरत है । आत्मा के विषय में शास्त्रो में हजारों चाते बतायी गयी है। उन -सबका सार यहाँ आपको थोडे से दो में मिल जाता है। किसी को यह शंका हो कि उसे थोडे से शब्दो मे कैसे बताया जा सकता है, तो 'चार 'पण्डितो की बात' आपकी शंका का समाधान कर देगी : चार पण्डितों की बात एक नगर मे चार महापण्डित रहते थे । एक आयुर्वेद का दूसरा धर्मशास्त्र का, तीसरा नीतिशास्त्र का और चौथा कामशस्त्र का । उन्होने अपने-अपने विषय का एक-एक महाग्रन्थ रचने का विचार किया । हर ग्रन्थ में एक लाख श्लोक थे । हर एक ने अपने ग्रंथ मे अपना पूरा पाण्डित्य उडेल दिया था । उस जमाने में हमारे देश में साहित्य की बड़ी कद्र थी । एक-एक सुन्दर श्लोक रचना के लिए लाख-लाख मोहर इनाम में दी जाती थी । इन पण्डितो ने सोचा कि किसी कद्रदान राजा को अपने ग्रंथ दिखाये । - अगर उसने प्रसन्न होकर हमे इनाम दिया, तो फिर जिन्दगीभर अर्थचिन्ता नहीं करनी पडेगी । पण्डितो के भी पेट होता है, यह नहीं भूलियेगा । समय पर उन्हें भी खाना चाहिए, पहनने को कपड़े चाहिए, रहने के लिए मकान चाहिए, पुस्तकादि भी काफी रखनी पड़ती है, कुटुम्ब परिवार का निर्वाह करना पड़ता है और व्यवहार को भी सँभालना पड़ता है । उन दिनो जितशत्रु राजा बड़ा कद्रदान माना जाता था । इसलिए ये · चारों पण्डित अपने ग्रन्थो को सुन्दर रेशमी वेष्टन में बाँधकर मजदूर के
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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