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________________ श्रात्मज्ञान कब होता है ? १७५ जो धीर है, सहनशील हैं, बाइस प्रकार के परीपको को सहन करने वाले है, जो केवल भिक्षा से निर्वाह करते हैं, जो सामायिक में रहते हैं, समभाव धारण किये रहते हैं, किसी के प्रति रागद्वेष नहीं रखते, जो धर्म का, उपदेश करनेवाले है, सर्वज-प्रणीत दयामय- दानमय धर्म की प्रभावना करनेवाले है | ऐसे सत्गुरुओं को शास्त्रकारों ने गाय जैसा, मित्र- जैसा, बन्धु-जैसा, पिता - जैसा, माता जैसा और कल्पवृक्ष - जैसा कहा है । वही आपको सच्चा आत्मज्ञान दे सकते है और इस ससार से आपका उद्धार कर सकते है । आत्मज्ञान केवल पुस्तकों से नहीं मिल सकता कुछ लोग कहते है -- "आत्मज्ञान के लिए गुरु की क्या जरूरत है ? आध्यात्मिक पुस्तको से आत्म-ज्ञान मिल जाता है ।" पर, यह बडी भूल है । किताबे पढकर प्राप्त किया हुआ जान अपूर्ण होता है । शास्त्रकारों के शब्दों मे कहें तो वह जार पुरुष से उत्पन्न पुत्र की तरह शोभा धारण नहीं कर सकता । केवल पुस्तकें पढकर आत्मज्ञान कितनों को हुआ है ? इसका अर्थ कोई यह न लगावे कि हम पुस्तक पठन का निषेध या विरोध करते हैं। अच्छी पुस्तको का वाचन स्वाध्याय रूप है और वह कर्मनिर्जरा का कारण है; लेकिन सिर्फ पुस्तके पढने से आत्मज्ञान मिल जायगा, यह मानना गलत है । पुस्तको में अमुक बात अमुक रूप से लिखी होती है पर उसका यथार्थ स्वरूप अपने-आप नहीं समझा जा सकता । दूसरी बात यह कि, पढते - पढते उठनेवाली शकाओं का समाधान भी नहीं हो सकता । इसीलिए हम कहते हैं कि सच्चा ज्ञान सद्गुरु ही दे सकते हैं। श्री इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह ब्राह्मण विद्वानों ने बहुत-सी पुस्तकें पढी थीं और उनमें वर्णित हर विषय पर वादविवाद करने मे भी वे समर्थ थे, लेकिन उनके मन में बहुत-सी गंकायें भरी हुई थीं। उनका समाधान किसी प्रकार नहीं हो रहा
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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