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________________ १४६ आत्मतत्व-विचार इन गदो के मुनने के बाद किसी को आत्मा की कर्तृत्व और भोक्तृत्व शक्ति के बारे में कोई शका न रह जानी चाहिए। आत्मा की क्रियागक्ति को काम में लगाने को पुरुषार्थ कहते है। इस पुरुपाथ के योग से ही धर्म की आराधना हो सकती है। पुरुषार्थ न किया जाये तो अहिंसा का पालन नहीं हो सकता और सयम में भी स्थिरता नहीं आ सकती। धर्म होना होगा तो हो जायेगा, ऐसा मानकर बैठे रहे तो धर्म का आराधन कभी भी नहीं हो सकता | उसके लिए दृढ़-संकल्प करना चाहिए और आत्मा का वीय निरन्तर स्फुरायमान करना चाहिए । हस और केशव की बात मुनिये आपको इत्मीनान हो जायेगा। हंस और केशव की बात एक गाँव के बाहर दो भाई चले जा रहे थे उनमे हस बड़ा था, केशव छोटा ! रास्ते में गुरु महाराज मिले। उन्होने उपदेश दिया"रात्रि-भोजन नरक का दरवाजा है, उसका त्याग करो।" उसी वक्त दोनो भाइयो ने रात्रिभोजन न करने की प्रतिजा ले ली। ____काम पूरा करके घर लौटे तो रात हो गयी थी, इसलिए उन्होने खाने के लिये ना कह दिया। पिता ने पूछा-"क्यों नहीं जीमना?" तो उन्होंने प्रतिज्ञा की बात बता दी। पिता को यह बिलकुल नहीं रुचा। उसने घर मे कह दिया--"कल से इनको दिन के ममय कुछ भी खाने को न देना !” सुबह दोनों को दुकान पर ले गया और गाम तक नहीं छोड़ा । रात को वापस आये तो माता ने भोजन सामने रखा, लेकिन प्रतिज्ञा में दृढ रहते हुए दोनो ने भोजन करने से इनकार कर दिया। मॉ-बाप ने मान लिया कि आज नहीं तो कल खायेगे। दूसरे दिन भी पिता ने उन्हे दुकान ले जाकर शाम को छोड़ा और वे रात मे घर पहुँचे । उस वक्त उनके आगे खाना रखा गया, पर उन्होने उसकी तरफ देखा भी नहीं। इसी तरह चौथा दिन हो गया । पिता ने कह
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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