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________________ आत्मा का खजाना १४३ जड-वस्तुओ में यंत्रादि के प्रयोग से क्रियाशक्ति उत्पन्न होती है। 'परन्तु उस क्रिया में और इस क्रिया में बड़ा अन्तर है। यात्रिक क्रिया में सज्ञा (इंस्टिक्ट), विचार (थाट), भावना (फीलिग) या इच्छा-शक्ति (विल) जैसा कुछ नहीं होता-केवल गति ( मोशन) होती है और वह वेग (स्पीड) के पूरे हो जाने पर रुक जाती है, जब कि आत्मा के द्वारा होनेवाली क्रिया मे सज्ञा, विचार, भावना और इच्छाशक्ति का तत्त्व होता है और इसीलिए उसमें विविधता दिखायी देती है।* खिलौने का कुत्ता चाबी देने से चलेगा-दौड़ेगा जरूर; पर वह जीवित कुत्ते की तरह इच्छापूर्वक विविध गतियाँ नहीं कर सकता। ___मनुष्य, पशु, आदि जीवित प्राणी चलकर कहीं चहुँच सकते है, पर जड़ यन्त्र अपने आप चलकर कहीं नहीं जा सकते । मोटरकार, रेलवे-ट्रेन, स्टीमर, सबमरीन, विमान, आदि सब यन्त्रों को खतरे आदि से बचाते हुए, समझदारी से चलाने के लिए 'ड्राइवर' या चालक की जरूरत होती है। अगर आत्मा शुभ क्रियाओं में प्रवृत्त होगी, तो पुण्य का सचय करेगी, अशुभ क्रियाओं में प्रवृत्त होगी तो पाप का सचय करेगी। इस पुण्य-पाप का फल उसे इस लोक में या परलोक मे अवश्य भोगना पड़ता है। इसीलिए, आत्मा को कार्य का कर्ता और भोक्ता माना गया है। कुछ लोग कहते हैं कि, आत्मा स्वय कोई क्रिया नहीं करती, बल्कि ईश्वर उसे क्रिया करसे की प्रेरणा करता है, इसलिए वह अच्छी या बुरी क्रिया करने में प्रवृत्त होता है । यहाँ प्रश्न यह होता है कि, अगर ईश्वर ही आत्मा को क्रिया करने के लिए प्रेरित करता हो, तो सिर्फ अच्छे काम *जो आत्मा अविकसित स्थिति में होती है, उसकी क्रियाओं में विचार नहीं, सशा प्रधान रूप से होती हैं । आहार, भय, मैथुन और परिग्रह ये चार मुख्य सज्ञाएँ है। अकारान्तर से दस, पन्द्रह और सोलह सशाओं का भी शास्त्र में उल्लेख है।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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