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________________ आत्मतत्व-विचार जल जाता है और जल प्रलय आदि प्रकृति की आपत्ति यो से नष्ट हो जाता है, लेकिन आत्मा के खजाने को न चोर-डाकू लूट सकते है, न अग्नि जला सकती है, न जल-प्रलयादि नष्ट कर सकते है। दूसरे, श्रीमंत या राजा बाहर जाये तो, या प्रवास पर निकले, तो अपने कीमती खजाने को साथ नहीं ले जा सकता । ले भी जाये, तो बडा खतरा उठाना पड़ता है, परन्तु आत्मा का खजाना ऐसा है कि, जहाँ जाये साथ ले जा सकते है और उसमे कोई खतरा नहीं उठाना पड़ता । ____ खजाना प्राप्त करने के लिए लोग कैसे खतरे उठाते हैं ! वे अँधेरी रात मे जगल का प्रवास करते है, पहाडो की गहन गुफाओ मे घुसते हैं और गहरे अधेरे मुँइधरा मे भी उतरते है। चौतरफ सागर की तरंगे उछलती हो और जहाँ खाने-पीने की वस्तुएँ भाग्य से ही मिले, ऐसे द्वीपो मं भी जाते है और कोई उनके मार्ग में अन्तराय डाले तो उसके साथ घमासान युद्ध भी करते है । परन्तु, आत्मा का खजाना प्राप्त करने के लिए आपको जगलो, पहाड़ो, मुँइधरों या द्वीपो में जाने की जरूरत नहीं है । वह आपके नजदीक है, बहुत नजदीक है और उसकी वस्तुओ को आप आसानी से प्राप्त कर सकते है। यह कोई मामूली मौका नहीं है । परन्तु, उस खजाने का आपको वास्तविक अनुमान नहीं है, इसलिए मिला हुआ मौका हाथ से निकल जाता है और आप जिन्दगी भर दरिद्र बने रहते है। धन की दरिद्रता से गुण की दरिद्रता ज्यादा खतरनाक है । एक से अन्न, वस्त्र, निवास, आदि को तगी सहन करनी पड़ती है, जब कि दूसरी से प्रगति, विकास या अभ्युदय के सब मार्ग अवरुद्ध हो जाते है और मानवता चली जाती है । इसलिए, गुण की दरिद्रता के तो साये से भी दूर रहना ! आत्मा के खजाने में बहुत से गुणरत्न भरे हुए हैं। उनमे भी दो गुणरत्न बहुत बडे हैं । उनका प्रकाश अद्भुत है, उनका तेज अनोखा है। -उनके नाम है-जान ओर दर्शन !
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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