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________________ १०६ आत्मतत्व विचार पैसे की कमाई सच्ची कमाई नहीं है, क्योकि उसमे से कुछ भी साथ नहीं जाता, हीरा-मोती के गहने या नोटो के वण्डल में से कुछ भी साथ जानेवाला हो, तो कह देना ! जहाँ दात कुरेदने की सलाई भी साथ नहीं ले जा सकते, वहाँ और वस्तुओ की बात क्या करना ? साथ तो सिर्फ पुण्य और पाप जानेवाले है । अगर पुण्य की कमाई की होगी तो, गति भी अच्छी मिलेगी, शरीर भी अच्छा मिलेगा और सयोग भी अच्छे मिलेगे । पुण्यशाली आत्मा का कैसा प्रभाव होता है, इस पर एक दृष्टान्त सुनिये : पुण्यशाली आत्मा का प्रभाव एक गाँव का राजा अपनी सभा में बैठा था। वहाँ एक नैमित्तिक. आया । नैमित्तिक अर्थात् अष्टाग निमित्त का जानकार-भविष्यवेत्ता ! राजा ने उससे पूछा-"भविष्यमें क्या होनेवाला है ?' नैमित्तिक बोला-"हे राजन् । आगामी वर्ष बड़ा अकाल पड़ेगा। ऐसे ग्रहयोग हैं, इसलिए अनाज का भरपूर सग्रह कर रखना, जिससे कि प्रजा भूखी न मरे ?” राजा ने कहा-"मैं अनाज का सग्रह तो कर लूं, लेकिन अगर सुकाल पडा और भावमे नुकसान हुआ तो?" नैमित्तिक बोला-"अगर मेरा वचन सच न निकले तो मेरी जवान खींच लेना, और तो क्या कहूँ !" राजा ने उसे नजर-कैद रखा और गॉव-गॉव से अनाज इकट्ठा करना शुरू कर दिया। लेकिन, जेठ महीने के बैठते-न-बैठते आकाश वादलो से घिरने लगा और बरसात बहुत अच्छी हुई। उस वर्ष अनाज इतना हुआ कि कुत्ते भी न खायें । राजा विचार करने लगा-"अनाज का जबरदस्त जत्था अब फेक देना पडेगा और इससे राज्य को बड़ा नुकसान सहन करना पड़ेगा। यह नुकसान उस नैमित्तिक की वजह से होनेवाला है; इसलिए उसे सख्त सजा देनी चाहिए।"
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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