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________________ आत्मा का मूल्य १०५ उस राजसभा में बहुत से जौहरी भी बैठे थे। उन्होने वह हीरा देखकर कहा कि, इसकी कीमत करीब डेढ लाख रुपये होगी ! फिर वह हीरा नाना फड़नवीस के हाथ में आया । उसने उसका बारीकी से निरीक्षण करना शुरू किया । इतने में एक मक्खी उडती हुई उस हीरे पर आकर बैठ गयो । इससे नाना फड़नवीस तुरत समझ गया कि, यह हीरा सच्चा नहीं है, बनावटी है, और उसे मिश्री तराश कर बनाया गया है, अन्यथा उस पर मक्खी नहीं बैठती । फिर उसने उस सौदागर से कहा"अगर तुम इस हीरे की कीमत पूछते हो, तो मैं कहता हूँ कि इसकी कीमत शक्कर के एक टुकड़े के बराबर है।" यह कह कर उसने वह हीरा मुँह मे रख लिया और सबके देखते हुए चबाकर खा गया । सौदागर ने अपने कान पकड़ लिए। लेकिन, आप तो शक्कर के टुकडे को ही हीरा मान कर काम चला रहे है और तिस पर दुनिया में अक्लमन्द कहला रहे हैं ! आप मानते हैं कि, हम दिनरात मेहनत करके कमाई कर रहे है, पर जिस कमाई में से कुछ भी साथ न जाये, वह कमाई किस काम की ? किसी आदमी के मकान में आग लग गयी । उसकी तमाम जिन्दगी की कमाई उसकी तिजोरी में थी। उसी तिजोरी के एक खाने में कुछ कोरे कागज भी थे, उस आदमी ने आग में से तिजोरी का माल बचाने की सोची । उतावली और घबराहट में तिजोरी का खाना खोल कर जो हाथ में आया उसे लेकर भागा। बाहर आने पर लोगों ने पूछा-"क्या ले आया ?" वह बोला-"अपने जीवन की कमाई।" उस वक्त उसके हाथ मे कोरे कागज ही थे । यह देखकर लोगो ने हंसते हुए कहा-"वाह रे, तेरी कमाई | क्या तूने अपनी जिन्दगी में यही कमाया था ?” ____शरीर-रूपी मकान से भागते वक्त आपके हाथ में कोरे कागज ही न आयें इसकी सावधानी रखना !
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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