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________________ आत्मा का मूल्य १०३ नहीं किया। अब भी अपनी खैर चाहते हो, तो उसे हमारे हवाले कर दो !" जुहार-मित्र ने कहा-"यह बात गलत है, आपको तलागी लेनी हो तो ले सकते है ।" राज-सेवको के दो-तीन बार हिरा-फिरा कर कहने पर भी जुहार-मित्र ने एक ही जवाब दिया, इसलिए उनका शक दूर हो गया और वे वहाँ से चले गये। किसी जगह से कर्मचारी का पता नहीं मिला, इसलिए राजा ने दिढोरा पिटवाया कि, "जो कोई कर्मचारी को पकड कर लायेगा उसे राज्य की तरफ से बडा इनाम मिलेगा !” । कर्मचारी को तीनो मित्रो को परीक्षा करनी थी। वह पूरी हो गयी थी। इसलिए उसने जुहार-मित्र से कहा-"तू राजा का ढिढोरा झेल ले और राजा के पास जाकर कह कि मैं कर्मचारी का पता बताये देता हूँ, पर आपकी जैसी धारणा है वैसा अपराधी वह कर्मचारी है नहीं, क्योकि आयुष्मान् कुमार सहीसलामत है और आप आजा करे तो इसी वक्त यहाँ आ सकता है।" ___जुहार-मित्रने ऐसा ही किया । इसलिए, राजा ने कुंवर और कर्मचारी को हाजिर करने का हुक्म किया । जुहार-मित्र ने उन दोनो को हाजिर कर दिया । यह देखकर राजा बडा प्रसन्न हुआ और जुहार-मित्र को बडा इनाम दिया । फिर राजा ने कर्मचारी से पूछा-"यह सब क्या है ?" तब कर्मचारी ने अथ-से-इति तक सारी कहानी कह सुनायी । इससे राजा को उसकी दीर्घदृष्टि के प्रति बड़ा मान उत्पन्न हुआ और उसने उसके वेतन मे भारी वृद्धि कर दी। फिर कर्मचारी ने नित्यमित्र और पर्वमित्र की सगति छोड दी और केवल जुहारमित्र के साथ प्रेम रक्खा। इससे वह बहुत सुखी हुआ। यहाँ कर्मचारी को जीव जानना । नित्यमित्र को चिर-परिचित गरीर जानना। पर्वमित्र को सगे-सम्बन्धी जानना । और, जुहारमित्र को कभीकभी होने वाला धर्माराधन जानना । जब मृत्यु आकर खड़ी हो जाती है,
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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