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________________ आत्मतत्व-विचार सुबह से शाम तक मेहनत-मजदूरी करके पेट भरनेवाला भी यह मांग स्वीकार नहीं करेगा, क्योकि धन-दौलत या मणि-मुक्ता से आप गरीर की कीमत ज्यादा ऑकते हैं। जरा बुखार आ गया, माथा दुखा, या पेट में पीडा उठी, तो तुरत वैदय-हकीम-डॉक्टर को बुलाते है और उसकी फीस देकर दवा लेते हैं । अगर वह यह कहे कि, "बीमारी गहरी है। आपको एक्स-रे लेना पडेगा, अमुक 'इजक्ठानो' का 'कोर्स' लेना पडेगा और अमुक खर्च करना पडेगा," तो उसके लिए आप तैयार हो जाते है । और, जिस धन को बडी ममता से इकट्ठा किया हो उसकी थैली का मुंह खोल देते है। अगर आपको धन-दौलत से शरीर प्यारा न हो तो आप शरीर की खातिर धन को कुर्बान क्यो करे ? आपको गरीर प्यारा है, बहुत प्यारा है ! उसे कुछ हो न जाये यह भय आपके मन मे सदा रहता है । इसीलिए, आप अनेक प्रकार की सावधानी रखते है, अनेक प्रकार के उपाय करते हैं। जीवन-सरक्षण की नीति गरीर पर कैसा असर डालती है, यह देखने के लिए एक वार चार डॉक्टरो ने मिलकर एक प्रयोग किया था। एक बिलकुल तन्दुरुस्त और हृष्टपुष्ट आदमी की जाँच करके पहले डॉक्टर ने कहा-"यूँ तो तुम्हारा शरीर ठीक लगता है, पर थोड़ी ही देर मे तुम्हें बुखार आयेगा।" यह सुनकर वह आदमी भड़का-"क्या मुझे बुखार आयेगा ?" यह विचार उसके मन मे घुस गया। थोड़ी देर के बाद दूसरे डॉक्टर ने उसकी जाँच करके कहा-"तुम्हारे शरीर मे बुखार है और सभव है कि वह बढ जाये, इसलिए दवा की एक खुराक अभी ले लो!” यह सुनकर उस आदमी को शङ्का हुई, कि कहीं कोई बड़ी बीमारी तो नहीं लग जायेगी ? उसके मन में इस भय का इतना ज्यादा असर हुआ कि, थोडी ही देर में बुखार से हिलने लगा। डॉक्टर ने देखा तो उसे १०४॥ डिगरी बुखार था। उस पर भय का असर पूरा-पूरा हो चुका था, इसलिए अब उसे भयमुक्त
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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