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________________ ६५ आत्मा की संख्या 1 बाबाजी उठे उससे पहले सेट उठ जाये और बाबाजी की सेवा में लग जाये | बाबाजी का दातुन पानो, स्नान, कपड़ा, भोजन, शयन सबकी चडी फिक्र रखे और यत्नपूर्वक खातिर तवाज करे । परन्तु यह सेवा सेट किमको करता था ? बाबाजी की या पारसमणि की ? लालच ऐसी वस्तु है कि, आदमी से चाहे जो काम करा ले ।' बाबाजी भी पक्के थे । वे सब स्वाग देखा करते; पर कुछ कहते नहीं । इस तरह बारह वर्ष बीत गये, तब बाबाजी प्रसन्न हुए और सेठ से कहने लगे कि 'तुम्हारी सेवा से मैं प्रसन्न हुआ हूँ । इसलिए, तुम्हें जो मॉगना हो सो मॉगो । सेठ ने कहा - " पारसमणि दे दीजिये ।" बाबाजी ने कहा - "अच्छी बात है। वह उस झोली मे लोहे की डिब्बी में पडा है, उस झोली को यहाँ लाओ ।' सेठ ने तो सुना था कि, पारसमणि लोहे को छू ले तो सोना हो जाता है और बाबाजी कहते है कि वह लोहे की डिब्बी में पडा है, इसलिए सेठ को का हुई कि बाबाजी पारसमणि के बदले कोई दूसरी ही चीज देकर मुझे टाल देगा । बारह बारह वर्ष की लगातार सेवा - चाकरी का यह फल 1 यह -सोच कर सेट ढीला पड़ गया। पर, बाबाजी ने कहा था, इसलिए उठकर -झोली ले आया और बाबाजी को दे दो । " बाबाजी ने उसमें से लोहे की एक डिब्बी निकाली और उसे खोली तो कपड़े की पोटली में कुछ बँधा हुआ था । सेठ को शका हुई कि इसमें पारसमणि नहीं, कोई और चीज ही बँधी हुई होगी । पर, बाबाजी ने कपडे की पोटली खोली कि जगमग प्रकाश हुआ और वह मणि ही हो ऐसा लगा । फिर, उस मणि को लोहे की डिब्बी में रखा कि वह सोने की हो गयी । इससे सेट की जान में जान आयी और विश्वास हो गया कि यह जरूर पारसमणि है । बाबाजी ने वह पारसमणि भेंट दे दी और सेठ की इच्छा पूरी की ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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