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________________ आत्मतत्व-विचार सेठ के इस विनोद से वातावरण जरा हल्का हुआ और गुरु महारान का व्याख्यान आगे चला। लेकिन, थोडी देर में सेठ ढुलक पड़े, तो गुरु महाराज ने जरा ऊँची आवाज से पूछा कि-"क्यों सेठ ! सो गये?" इससे सेठ हड़बड़ा कर जग गये और कहने लगे "गुरुदेव! मैं सो नहीं गया था, पर निद्रा देवी आ गयी, इसलिए उसकी छाती पर चढ़ बैठा था।" __ इस जवाब से सब श्रोता हँस पड़े और गुरु महाराज को भी हँसी आ गयी। जब तक तत्त्वज्ञान की बातों में रस नहीं पडता, तब तक ऐसा ही होता है। इसलिए, भाग्यशालियो को तत्त्व की बातों मे रस लेना चाहिए । शास्त्रकारो ने कहा है कि : 'वुद्धः फलं तत्वविचारणं च'बुद्धि का फल तत्त्व की विचारणा है । आप सब तत्त्व की बात में रस ले रहे हैं । यह आनन्द की बात है, पर अभी और रस लें और तत्त्व बोध पाकर पुरुषार्थ में लग जाये, यही हमारी भावना है।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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