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________________ पाँच तीनों विषय बड़े ही निगूढ़ हैं, किंतु उन्हें सरल से सरल बना कर श्रोता तथा पाठक के लिये वोधगम्य किया गया है। यह वोधगभ्यता लाई गई है नाना धार्मिक, ऐतिहासिक, लोक प्रचलित कथाओं के उदाहरण द्वारा। ऐसा करने से निगृढ़ विषय सरल तो हुआ ही है, रोचक भी वना है। ग्रंथ रोचक तथा सरल होने के साथ ही प्रामाणिक भी है। प्रत्येक विषय को जैन-धर्म ग्रंथों से उद्धरण दे-देकर प्रमाणित किया गया है। जैन ज्ञान-विज्ञान के साथ ही विषय को स्पष्ट करने तथा सभी प्रकार के श्रोता तथा पाठक को संतुष्ट करने के लिए भारतीय अन्य धर्म-ग्रंथों से भी प्रामाणिक उद्धरण उपस्थित किए गए हैं। इतना ही नहीं यथाप्रसंग विदेशी ज्ञान-विज्ञान की विवेचना भी ग्रन्थ में प्राप्त है। इस प्रकार ग्रंथ जैन-मन के ज्ञान-विज्ञान से तो समृद्ध है ही, भारतीय अन्य धर्मों तथा विदेशी धर्मों के ज्ञान-विज्ञान से भी यह समृद्ध हुया है । किंतु, समस्त ज्ञान-विज्ञान रोचक तथा सरल रीति से संमुख रखा गया है। इस ग्रंथ द्वारा श्रीमत् विजय लक्ष्मण सूरीश्वर महाराज के दो गुणों की ओर दृष्टि आकृष्ट होती है। एक तो यह कि उनमें संतई-साधुता और पांडित्य का मणिकांचन संमिश्रण है। साधु होने के साथ ही वे उच्चकोटि के पण्डित, विद्वान भी हैं। ऐसा संयोग विरलतः ही मिलता है। दूसरा गुण है उनकी उदारता। जैन-साधु तथा जैन-धर्म-साहित्य के गण्य-मान्य पण्डित होते हुए भी स्वदेशी-विदेशी अन्य मतों, पन्थों के प्रति उन्होंने उपेक्षा का भाव अवलंबन नही किया है। अपने मत की पुष्टि के लिए उन्होंने सभी धर्मों के ग्रंथों का उपयोग किया है। यह उदारता ही साधु का भूपण है। इस प्रकार सच्ची साधुता
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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