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________________ परिशिष्ट सोहं सोहं नित जप, पूजा पागम सार। सत्संगत में बैठना, यही करै ब्यौहार ॥४९।। अध्यातम पंचामिया माहि कह्यो जो सार । द्यानत ताहि लगे रह्यो, मत्र संमार असार ॥५०॥ ॥ इति ॥ फुटकल पद आतम' रूप सोहावना कोई जान रे भाई । जाके जानत पाइए, त्रिभुवन ठकुराई । आतम० ॥१॥ मन इन्द्री न्यारे करौ, मति और बिचारौ। विषय विकार सबै मिट, सहजै सुख धारौ ॥ आतम० ॥२॥ बाहिर ते मन रोक के, जब अन्तर आया। चित्त कमल सु लह्यो, तहां चिन्मूरति पाया । आतम० ॥३॥ पूरक कुभंक रेचक तै, पहिले मन साधा। ग्यान पवन मन एकता, भई सिद्ध समाधा ॥ आतम० ॥४॥ जिहि बिधि जिहि मन बस किया, तिन आतम देखा। द्यानत मौनी हू रहै, पाई सुख रेखा ।। आतम० ॥५॥ आयो सहज बसंत खेलें सब होरी होरा ।। टेक ।। उत बुधि दया छिमा बहु ठाढ़ी, इत जिय रतन सजे गुन जोरा ॥पायो०॥१॥ ज्ञान ध्यान डफ ताल बजत है, अनहद शब्द होत घनघोरा। धरम सुराग गुलाल उड़त है, समता रंग दुहुँ ने फोरा || आयो० ॥२॥ परसन उत्तर भरि पिचकारी, छोरत दोनों करि करि जोरा। इतत कहैं नारि तुम काकी, उततें कहैं कौन को छोरा आयो०॥३॥ पाठ काठ अनुभव पावक में, जल बुध शांत भई सब ओरा। द्यानत शिव आनन्द चन्द छबि, देखें सज्जन नैन चकोरा आयो०॥४॥ . १. छाबड़ों का मंदिर (गुटका नं. ५०), जयपुर की प्रति से। . २. · द्यानत पद संग्रह (पद नं०८६) जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, कलकत्ता।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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