SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री चूनरी भादि भगवतीदास (रचनाकाल-सं० १६८०) आदि जिनेसर बदौं पई मण वय काइ त्रिसुद्धि हो । सारद पद प्रणमूं सदा उपजै निर्मल बुद्धि हो॥ । मेरो सील सुरंगी चूंनड़ी ॥१॥ तुम्ह जिनवर देहि रंगाइ हो बिनवइ सषी पिया सिव सुन्दरी। अरुण अनुपम माल हो मेरी भव जल तारण चुनड़ी ॥२॥ समकित वस्त्र बिसाहिले ज्ञान सलिल संगि सेइ हो। मल पचीस उतारि कै दिढिपन साजी देइ जी ।मेरी० ३॥ देस दया गहि पुरभला, जिण सासण धर्म सुजाण हो। रंग रंगोले छी पिया तिहां चारित बसैं सुजाण हो। मेरी सिधिकधूकी चूंनड़ी ॥४॥ दया धर्म के छीं पिया नेम संजम सेल लगाइ हो। सुमति घटकड़ी पोतीए गुपति सुमांई लाय हो । मेरी मोह निवारण चूंनड़ी ॥५॥ पंच महाव्रत कांति सुं हरदै लाइ अनूप हो। मन में दान बिछाइ कइ सौंध सुकावहु धूप हो ।मेरी० ६॥ अकिंचन पुर में षरे अजब फूट सुहाल हो। क्रीया ते वाणी अमृती बूरा भाव रसाल हो ॥मेरी० २५॥ सीरा सिषिरणि षीर ही दाल भात ए पांच हो। पंच परम गुरु मंत्र हइ हृदय न टालहु रंच हो।मेरी० २६॥ बड़े पथौंड़े सागले काचर पापड़ सोइ हो। पांच अणुबृत जांणीए लौंन खटाइ सोइ हो ॥मेरी० २७॥ दूध दही घीव ईष रस सुनि सिक्षा व्रत चारि हो। मेवा जाति अनेक जे गुण ग्रन्थ विचारि हो ॥मेरी० २८॥ उपसमरस पाणी चलूं क्षय उपसमरस सींक हो। क्षयक मुष तंबोल दे छोतिन रहे अलीक हो ॥मेरी० २९॥ १. प्रति मगोरा, जि० मथुरा निवासी पं० बल्लभराम जी के पास सुरक्षित ।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy