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________________ एकादश अध्याय २४७ कबीर ने 'सहज' को सहज-समाधि, सहज-मार्ग और जीवन की सहज पद्धति के लिए प्रयुक्त किया है। द्विवेदी जी ने लिखा है कि वे । कबीर) साधना को सहज भाव से देखना चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि प्रतिदिन के जीवन के साथ चरम साधना का कहीं भी विरोध हो। दैनिक जीवन और शाश्वत साधना का यह जो अविरोध भाव है, वहीं कबोर का सहज पन्य है।"' कबीर जब सहज समाधि की बात करते हैं तो उनका तात्पर्य ऐसी हो सरल जीवन पद्धति से होता है। 'सहज सम धि' की जानकारी के बाद साधक को प्रोत्रं नहीं मंदनी पड़ती, मुद्रा नहीं धारण करनी पड़ती और न आसन ही लगाना पड़ता है। उसका तो हिलना डुलना ही परिक्रमा होता है; सोना, बैठना ही दण्डवत है; बोलना ही नाम जप है; खाना ही पूजा है। लेकिन इस उपाधि रहित महज ममाधि में वड़ी कठिनाई से लौ लगती है और सन्त रैदास माक्षी है कि एक बार इससे लौ लगने पर जन्म-मृत्यु का भय नहीं रह जाता है। सन्त नन्दादा ने यद्यपि हठयोग की साधना का विस्तार से वर्णन किया है. नथापि वह भी सहज साधना' के महत्व से भलीभांति परिचित थे और इसीलिए उन्होंने 'सहज समाधि' पर काफी जोर दिया है।' दादू को सहज मार्ग में ही विश्वास है" और सन्त दूलनदास जी सहज भाव से ही राम-रसायन को पीने की बात करते हैं।' गुलाल साहब तो 'सहज' नाम का व्यापार करने की ही अपने मन को सलाह देते हैं। १. हजारी प्रसाद द्विवेदी - हिन्दी साहित्य की भूमिका, पृ०३८ । २. देखिए.- हजारी प्रसाद द्विवेदी, कबीर, पद ४१, पृ० २६२ । ३. सहज समाधि उपाधि रहित होइ बड़े भागि लिव लगी। कहि रविदास उदास दास मति जनम मग्न भय भागी॥ ५ ॥ (सन्त मुधा सार, पृ०.१४) सहजै नाम निरंजन लीजै । और आय कट्ट नहिं कीजै ।। सहजै ब्रह्म अगिनि पर जारी । सहज समाधि उनमनी तारी॥ (डा. त्रिलोकी नारायण दत-मुन्दर दर्शन, पृ० १६० से उद्धृत) ५. देखिए-सन्त मुधा सार (खण्ड १) पृ० ४८८ । ६. देखिए-सन्त सुधा सार (खण्ड २) पृ०८। ७. देखिए-सन्त सुधा सार (खण्ड २) पृ० १२३ ।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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