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________________ २२८ अपभ्रंश और हिन्दी में जैन-रहस्यवाद 'बंबा निकटि जु घट रहिओ दूरि कहा तजि जाइ। जा कारणि जग इढ़िअउ, नेरउ पाइअउ ताहि ॥१६॥ ( सन्त कबीर, पृ. ८०) कबीरदास शरीर स्थित देव को समझाने के लिए कभी तो उसे मृग के शरीर में विद्यमान कस्तूरी के समान बताते हैं और कभी उसे शरीर रूपी सरोवर में कमल के समान विकसित कहते हैं : सरीर सरोवर भीतरै आछै कमल अनूप । परम जोति पुरखोतमां जाकै रेख न रूप ॥ (सन्त कबीर, पृ० १६१) इसी प्रकार योगीन्दु मुनि ने बहुत पहले ही कहा था अनादि अनन्त ब्रह्म का वास देह रूपी देवालय में ही है (परमात्मप्रकाश ११३३ ) । शरीर में स्थित होने पर भी उसे हरिहर भी नहीं जान पाते (परमात्मप्रकाश २४२) । मुनि रामसिंह भी कहते हैं कि देह रूपी देवालय में जो शक्ति सहित वास करता है, वह शिव कौन है ? इस भेद को जान (पाहुड़दोहा, दो० नं० ५३)। इस अनन्त तत्व को यद्यपि जैन कवियों और कबीर ने अनेक सम्बोधनों से पुकारा है, उसे शिव, विष्णु, राम, केशव आदि कहा है, किन्तु दोनों को अवतारवाद में विश्वास नहीं है। दोनों का आराध्य निर्गण, निराकार, अलख और सभी विशेषणों से परे है। जिस प्रकार योगीन्दु मुनि ने कहा था कि निरञ्जन तत्व वह है, जिसका कोई वर्ण नहीं, गन्ध नहीं, रस नहीं, शब्द नहीं, स्पर्श नहीं, जिसका न जन्म होता है और न मरण, जो क्रोध, मोह, मद और मान आदि से विवर्जित है (परमात्मप्रकाश, पृ० २७-२८) उसी प्रकार कबीर का 'राम' भी सगुण-निर्गुण से परे है, रूपरेख हीन है, वेदविजित, भेद-विवजित, पाप-पुन्य-विजित, ग्यान-विवजित, ध्यान-विवजित और भेष विवजित है : राम कै नाइ नींसान बाबा, ताका मरम न जानें कोई। भख त्रिषा गुण वाके नाही, घट घट अंतरि सोई ॥टेक।। बेद बिबर्जित भेद बिबर्जित बिबर्जित पाप रु पुनयं । ग्यान बिबर्जित ध्यान बिबर्जित, बिबर्जित अस्थूल सुन्यं ।। भेष बिबर्जित भीख बिबर्जित, बिबर्जित ऽयंभक रूपं । कहै कबीर तिहूं लोक बिबर्जित, ऐसा तत्त अनूपं ॥२२०॥ (कबीर ग्रन्थावली, पृ० १६२) आत्मा परमात्मा की इस अद्वय स्थिति का और चित्त के परमात्मा में लीन होने की सामरस्य दशा का वर्णन मुनि रामसिंह और कबीर दोनों मे एक ही ढंग से किया है। मुनि रामसिंह ने कहा है कि जब चित्त जल में नमक के समान विलीन ( बिशेष रूप से लीन ) हो जाता है और जीव समरसता
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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