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________________ नवम अध्याय २११ योग की परम्परा : भारतवर्ष में 'योग' की परम्परा अति प्राचीन है। कुछ विद्वानों ने इसका स्वरूप वैदिक युग में ही खोजा है। वैदिक काल के व्रात्य लोगों के सम्बन्ध में कहा गया है कि उनकी साधना प्रणाली पदम के वहत निकट थी। वेदों के पश्चात उपनिषदों, श्रीमद्भागवत गीता, योगशिष्ट तथा तन्त्र ग्रन्थों में योग प्रणाली के उल्लेख मिलते हैं। किवदन्ती है कि आदि पुरुष हिरण्यगर्भ ने ही सर्वप्रथम मानव मात्र के कल्याण के लिए इस विद्या का उपदेश दिया था। 'योग दर्शन के टीकाकार वाचस्पति मिश्र ने लिखा है कि पतजंलि ने हिरण्यगर्भ द्वारा उपदिष्ट शास्त्र का ही पुन: प्रतिपादन किया था। इसीलिए योगी याज्ञवल्क्य ने हिरण्यगर्भ को ही इस शास्त्र का प्रादि उपदेष्टा कहा है।" उपनिषदों में से कुछ तो योग साधना' से हो सम्बद्ध हैं। इस प्रकार की कुछ उपनिपदें मद्रास की अड्यार लाइब्रेरी से श्री महादेव शास्त्री द्वारा सन् १९२० में 'योग उपनिषदः' नाम से प्रकाशित की गई हैं। मांख्य दर्शन और योग का तत्ववाद एक ही है और सांख्य काफी प्राचीन मत है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि केवल बाल बुद्धि के लोग ही सांख्य और योग को अलग-अलग मत समझते हैं। पण्डित लोग ऐसा नहीं मानते । सांख्य तत्ववाद का नाम है और योग उसकी प्रक्रिया का । योग को 'सेश्वर सांख्य' कहा भी जाता है। योग शास्त्र के प्रसिद्ध आचार्य पतंजलि के समय से तो योग को युक्तिसंगत और क्रमबद्ध दर्शन का ही रूप मिल गया। पतंजलि का समय निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। कुछ विद्वान उन्हें विक्रम पूर्व दूसरी शताब्दी में विद्यमान मानते हैं तो अन्य उनका समय विक्रम की प्रथम शताब्दी मानते हैं। कुछ हो, इससे इतना तो निश्चित ही है कि पतंजलि ने विक्रम सम्वत् के आरम्भ होने से कुछ इधर-उधर 4. W. Briøgs-'Gorakhnath and the Kanphata Yogis' (Religious life of India series, Calcutta 1938, P. 212-13.) २. कल्याण योगांक, पृ०६२। __, पृ० १०६ । ४. , , पृ० १२२ । ६. , , पृ० १०५ । दे०-नाथ सम्प्रदाय, पृ० ११४ । ८. सांख्ययोगौ पथग्बालाः प्रवदन्ति न पंडिताः। एकमयास्थितः सम्यगुभयोविन्दते फलम् ।।४।। यत्सांख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते । एक सांख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति ||५|| (गीता, अध्याय ५)
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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