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________________ अपभ्रंश और हिन्दी में जैन-रहस्यवाद अरे पंच पयारह तूं रुलिउ, नरक निगोद मझारी रे। तिरिय तने दुख ते सहै, __नर सुर जोनि मझारी रे ।। मन ॥॥ अन्त में कवि ने कहा है कि उसने भीमसेन टोडरमल के जिन चैत्यालय में आकर 'मनकरहागस' की रचना की : 'भीमसेणि टोडउ मल्ल उ, जिन चैत्यालय आइ रे। ब्रह्मदीप रासौ रचो, भवियहु हिए समाइ रे । मन० २० ॥ इति मन करहा समाप्त 'टोडा भीम' नामक स्थान राजस्थान के भरतपुर जनपद में है तथा चारों ओर में पर्वतमालाओं से घिरा हुआ प्राचीन स्थान है। इससे यह तो स्पष्ट ही हो जाता है कि ब्रह्मदीप ने राजस्थान का भ्रमण किया था। उनको भाषा पर राजस्थानी प्रभाव देककर यह भी अनुमान किया जा सकता है कि सम्भवतः वे राजस्थान के ही रहने वाले हों। आमेर शास्त्र भाण्डार के विभिन्न गुटकों में आपके कुछ फुटकल पद भी सुरक्षित हैं। ऐसे प्राप्त पदों की संख्या दस है। किन्तु खोज से अधिक पद प्राप्त होने की आशा है। ये पद आपकी अध्यात्म साधना के प्रतीक हैं ! का कहना है कि सच्चा योगी वह है, जो बाहयाडम्बरों में न फंसकर शद्ध निरंजन का ध्यान करता है, अहिसा व्रत का पालन करता है, ध्यान रूपी अग्नि और वैराग्य रूपी पवन की सहायता से कर्म रूपी ईधन को जला देता है, मन को गप्त गहा में प्रवेश कराकर सम्यकत्व को धारण करता है, पंच महाव्रत की अस्म और संयम की जटाएं धारण करता है, सूमति ही जिसकी मद्रा है और जो शिवपुर से भिक्षा प्राप्त करता है, घट के भीतर ही अपना दर्शन करता है और गुरु-शिप्य के जाल में नहीं पड़ता है : 'औध सो जोगी मोहि भावै । सुद्ध निरंजन ध्यावै ।। सील हुडं सुरतर समाधि करि, जीव जंत न सतावै। ध्यान अगनि वैराग पवन करि, इंधण करम जरावै ॥ औध०१॥ मन करि गुपत गुफा प्रवेश करि, समकित सींगी बावै ।। पंच महाव्रत भसम साधि करि, संजम जटा धरावै ॥ औधः २॥ ग्यान कछोटा दो कर खप्पर, दया धारणा धावै। । सुमति गुपति मुद्रा अनुपम सिवपुर भिख्या लावै ॥ औध०३॥ आप ही आप लखै घट भीतरि, गुरू सिख कौन कहावै । कहै ब्रह्मदीप सजन समझाई, करि जोति में जोति मिलावै । औध०४॥ (आमेर शास्त्र भाण्डार, जयपुर, गुटका नं० २६, पृ०७६)
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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