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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 73 चक्रवर्ती की सेना, जो बारह योजन फैली रहती है, वहां प्रकाश करता है। खण्ड प्रपात गुफा और तमिस्रा गुफा में जब चक्रवर्ती प्रवेश करते हैं तो इसको हस्तिरत्न के सिर पर दाहिनी ओर बांध देते हैं। तब इस रत्न से 12 (बारह) योजन तक गुफा के दोनों पार्यों में उजाला हो जाता है। यह मणि जिसके हाथ या सिर पर बांध दी जाती है, उसके देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी सभी उपद्रव और रोग समाप्त हो जाते हैं। यह मणि सिर या किसी अंग पर बांध कर युद्ध में जाने से किसी भी शस्त्र का प्रभाव नहीं होता है, सदैव निर्भय रहता है। इस मणि को कलाई पर धारण करने से सदैव यौवन बना रहता है, केश और नाखून बढ़ते नहीं हैं। (7) कांकिणी- यह वजन में आठ सोनैया जितना समचतुरस्र संस्थान वाला, विष नष्ट करने में समर्थ, जहां चन्द्र, सूर्य और अग्नि अन्धकार को नष्ट करने में समर्थ नहीं होते, वहां यह तमिस्र गुफा में अन्धकार को नष्ट कर देता है। 12 योजन तक इसकी किरणें अंधकार को नष्ट करती हैं। चक्रवर्ती इसको रात्रि में अपने स्कन्धावार में स्थापित करता है, तो यह रात को भी दिन बना देता है। इसी के प्रभाव से चक्रवर्ती द्वितीय अर्ध भरत को जीतने के लिए सम्पूर्ण सेना सहित तमिस्रा गुफा में प्रवेश करते हैं। चक्रवर्ती इस रत्न से तमिस्रा गुफा में उनपचास मण्डल बनाता है। एक भित्ति पर 25, दूसरी पर 24 मण्डल बनाता है। एक-एक मण्डल का प्रकाश एक-एक योजन तक फैलता है। ये मण्डल जब तक चक्रवर्ती, चक्रवर्ती पद का पालन करता है, तब तक रहते हैं, गुफा भी तब तक खुली रहती है। चक्रवर्ती के समाप्त हो जाने पर गुफा बन्द हो जाती है। (8) सेनापति- सेना का नायक होता है जो अनेक देशों को जीतने में समर्थ होता है। (9) गाथापति- चक्रवर्ती के घर की व्यवस्था करता है। 24 प्रकार का धान्य, फल, सब्जियों आदि का उत्पादक होता है। (10) बढ़ई- 42 मंजिल का महल बनाता है और उन्मग्नजला और निमग्नजला. इन दो नदियों को पार करने के लिए सेतु बनाता है। (11) पुरोहित- शांतिकर्म करता है।
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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