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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 52 वहन करने में समर्थ ........ नहीं-नहीं ........ वहन नहीं कर पाऊंगा। गृहस्थ भी नहीं बन पाऊँगा। तब क्या करूं ........ कोई मध्यम मार्ग खोज निकालूं। हां, यह ठीक लगता है। शरीर को असह्य कष्ट भी नहीं होगा, लोकापवाद भी नहीं। क्या परिवर्तन करे निर्ग्रन्थ श्रमण त्रिदण्ड- मन, वचन, काय - दण्ड से विरक्त है लेकिन मैं त्रिदण्डयुक्त हूं। अतः त्रिदण्डी (त्रिदण्ड के चिह्न वाला संन्यासी) बन जाऊँ। ये साधु हाथों से बालों का लोच करने वाले हैं। मैं कैंची आदि शस्त्र से बालों को काट कर शिखाधारी बन जाऊँ। ये साधु महाव्रतधारी हैं। मैं अणुव्रतधारी बन जाऊँगा। ये मुनि कनक-कान्ता के त्यागी, निष्परिग्रही हैं। मैं मुद्रादिक परिग्रहधारी बन जाऊँगा। मुनि मोहजयी हैं और मैं मोह से आच्छादित हूं। अतः छत्र धारण कर लूंगा। ये मुनि जूते-चप्पलरहित हैं, मैं जूते-चप्पल पहन लूंगा। मुनि-गण नव बाड़ सहित ब्रह्मचर्य का पालन करने से शील की सुगन्ध से युक्त हैं, मैं शील की सुगन्धरहित होने से चन्दन का तिलक लगाऊँगा। मुनिगण कषायजयी होने के लक्ष्यवाले हैं, अतः श्वेत वस्त्र पहनते हैं, मैं कषाययुक्त होने के कारण काषायिक गेरुए वस्त्र धारण करूंगा। ये मुनि सचित्त जल के आरम्भ-त्यागी होने से स्नानादिरहित हैं, मैं परिमित जल से स्नान करूंगा। इस प्रकार स्वबुद्धि से निर्णय करके मरीचि ने साधुवेश का परित्याग करके त्रिदंडी संन्यास ग्रहण किया। जैसे ही त्रिदण्डी संन्यासी का वेष ग्रहण किया, नगर में चर्चा होने लगी कि मरीचि ने साधुवेश का परित्याग कर दिया। लोगों का समुदाय उसके पास आने लगा, उससे पूछता कि धर्म क्या है? वह मरीचि कहता धर्म तो जो जिनेश्वर देव ऋषभदेव ने कहा, वही है। तब लोग पूछते हैं कि तुमने वह क्यों छोड़ा? तब मरीचि कहता है- मेरु के भार को उठाने के समान साधुजीवन दुष्कर है। मैं उसका भार वहन करने में समर्थ नहीं हूं। लेकिन वास्तव में प्रभु का मार्ग श्रेष्ठ है। जो भव्य जीव मरीचि से प्रतिबोध पाकर दीक्षा लेने की आकांक्षा रखता, मरीचि उन्हें भगवान् ऋषभदेव को सौंप देते हैं। इस प्रकार भगवान् के साथ-साथ विहार करता हुआ मरीचि सम्यक् प्ररूपणा करता था।
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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