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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर 39 सिंहासन, छत्र, चंवर, तेल के डिब्बे, सरसों के डिब्बे, पंखे, धूपदान-ये सभी एक हजार आठ–आठ विकुर्वणा द्वारा बनाते हैं। फिर सभी को लेकर क्षीरसमुद्र आते हैं। वहां से जल-पुष्पादि ग्रहण करते हैं। पुष्करोद समुद्र से जल ग्रहण करते हैं। भरत ऐरावत के मगधादि तीर्थों से जल, मिट्टी गंगादि महानदियों से लेते हैं। क्षुल्ल हिमवान पर्वत से सब प्रकार के सुगन्धित पदार्थ, मालाएँ, औषधियां, श्वेत सरसों ग्रहण करते हैं । अन्य अनेक पर्वतों, नदियों, तीर्थों, द्वीपों से अभिषेकयोग्य सभी सामग्रियां लेकर अच्युतेन्द्र के सामने लाकर उपस्थित करते हैं। तत्पश्चात् अच्युतेन्द्र दस हजार सामानिक देवों, तेतीस त्रायस्त्रिशंक देवों, चार लोकपालों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति देवों, चालीस हजार अंगरक्षक देवों सहित उत्तम जल से परिपूर्ण चंदन - चर्चित एक हजार आठ सोने के कलशों से यावत चन्दन के कलशों से सर्व प्रकार की औषधियों एवं श्वेत सरसों द्वारा तीर्थंकर भगवान् का जन्माभिषेक करते हैं। जब अच्युतेन्द्र अभिषेक करते हैं, तब अत्यन्त हर्षित-आनन्दित होते हुए अन्य इन्द्र छत्र, चंवर, धूपदान, माला, वज्र, त्रिशूल हाथों में लिए अंजलि बांधे खड़े रहते हैं । अन्य देव नृत्य, वादन, गायन, क्रीड़ा आदि करते हुए महोत्सव मनाते हैं। 1 -- तदनन्तर अच्युतेन्द्र अभिषेक - सामग्री द्वारा भगवान् का अभिषेक करता है। जय-विजय शब्दों से बधाता है, जय-जयकार करता हुआ रत्न तौलिए से शरीर पौंछता है, फिर शरीर पर चन्दन का लेप लगाता है। दिव्य वस्त्र पहिनाता है, फिर भगवान् को अलंकृत करता है, नाट्य-विधि प्रदर्शित करता है और चावलों से आठ मंगल बनाता है यथा दर्पण, भद्रासन, वर्धमानवर कलश, मत्स्य, श्रीवत्स, स्वस्तिक, नन्द्यावर्त । तदनन्तर गुलाब, मल्लिका, चम्पा, अशोक आदि फूलों को ग्रहण करता है। वे पुष्प अच्युतेन्द्र की हथेलियों से नीचे गिरते हैं और घुटनों - पर्यन्त ढेर हो जाता है । फिर श्रेष्ठ लोबान आदि से धूप देता है। तत्पश्चात् एक सौ आठ महिमामय काव्यों द्वारा स्तुति करता है | बायां घुटना ऊपर उठाकर, दायां घुटना नीचे करके स्तुति करता है । हे सिद्ध ! बुद्ध ! नीरज ! श्रमण ! समाहित! समाप्त ! समायोगिन् ! शल्यकर्तन! (कर्मशल्यरहित) निर्भय ! नीरागदोष ! निर्मल! निर्लेप ! निःशल्य,
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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