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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर 37 हजार योजन ऊँचा विशाल महेन्द्र ध्वज गगन मण्डल का स्पर्श करता हुआ आगे बढ़ता है। तत्पश्चात् पांच सेनाएं, पांच सेनापति देव तथा अन्य देव प्रस्थान करते हैं। तब शक्रेन्द का वह विमान तीव्रगति से चलता हुआ नन्दीश्वर द्वीप के रति पर्वत तक आता है। वहां विमान का संकोचन कर जंम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में क्षत्रियकुण्ड में आता है। जन्म - भवन की तीन बार प्रदक्षिणा करता है। जन्म-भवन के बाहर ईशान कोण में भूमि से चार अंगुल ऊँचा विमान को ठहराता है। आठ अग्रमहिषियों, गंधर्वानीक, नाट्यानीक नामक दो सेनाओं के साथ शक्रेन्द स्वयं पूर्व दिशावर्ती सीढ़ियों से नीचे उतरते हैं। 84 हजार सामानिक देव उत्तर दिशावर्ती सीढ़ियों से नीचे उतरते हैं। शेष देव-देवियां दक्षिण दिशावर्ती सीढ़ियों से नीचे उतरते हैं । तब शक्रेन्द महाराज सम्पूर्ण परिवार सहित भगवान् महावीर एवं महारानी त्रिशला के पास आते हैं। उनकी तीन बार आदक्षिणा - प्रदिक्षणा करते हैं, प्रमुदित होकर, हाथ जोड़कर विनम्र शब्दों में निवेदन करते हैं। हे रत्नकुक्षि धारिके! जगत् प्रदीप प्रदायिके ! अतिशय समन्वित धर्मतीर्थ के चक्रवर्ती, लोकोत्तम तीर्थंकर देव की पुण्यशालिनी माते! आप धन्य हैं! कृतार्थ हैं! मैं देवराज देवेन्द्र भगवान् का जन्म-महोत्सव मनाऊँगा, आप भयभीत मत होना । इस प्रकार कहकर मां त्रिशला को अवस्वापिनी दिव्य मायामती निद्रा में सुला देते हैं। तीर्थंकर भगवान् को हाथों में उठाकर चिन्तन करते हैं, कोई समीपवर्ती दुष्ट देव - देवियां कौतूहलवश या दुष्टाभिप्राय से महारानी त्रिशला मां की निद्रा भंग कर दें तो माता विरह से तड़फ उठेगी । तब क्या करना एक भगवान् जैसे शिशु की प्रतिकृति बनाना । तुरन्त प्रतिकृति बनाकर मां के पास सुलाते हैं । स्वयं की वैक्रियलब्धि से पंचरूप बनाते हैं। एक शक्र भगवान् को हथेलियों के सम्पुट से उठाता है। दूसरा पीछे छत्र धारण करता है । दो शक्र दोनों ओर चंवर ढुलाते हैं। एक शक्र हाथ में वज्र लिये आगे चलता है । इस प्रकार वह शक्रेन्द्र अनेक भवनपति - वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव - देवियों से घिरा हुआ, दिव्य ऋद्धिसम्पन्न त्वरित गति से मेरु पर्वत के पण्डकवन की अभिषेक शिला और अभिषेक सिंहासन के समीप आता है' । सुमेरु पर्वत
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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