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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 31 देव जन्माभिषेक - षष्ठम अध्याय __ अन्धकार से आलोक में ले जाने वाले, असत् से सत् की ओर गतिमान करने वाले, सृष्टि में अभिनव उजाला भरने वाले, अपनी जीवन-किरणों से नया इतिहास बनाने, आदर्शों के अद्वितीय कोष, अनेक भव्य प्राणियों को शाश्वत सुखधाम पहुंचाने वाले भगवान् महावीर का जन्म हो चुका है। चतुर्थ आरक के 75 वर्ष 8) माह अवशेष हैं।' तीर्थंकर तृतीय या चतुर्थ आरे में ही जन्म लेते हैं। सुखमय काल में ही उनका जन्म होता है। दुषम काल में जन्म नहीं होता। इसी कारण एक उत्सर्पिणी या अवसर्पिणी में 24 ही तीर्थंकर होते हैं, अधिक नहीं। भगवान् का जन्म जन-जीवन के कल्याण के लिए होता है। वे स्वयं कष्ट सह कर भी पर-उद्धारक होते हैं। ऐसे ही थे करुणानिधि महावीर! जिनके जन्मते ही दशों दिशाएं आलोक से भर गईं। खुशियों का अम्बार छा गया । मात्र मनुष्यलोक ही नहीं, तीनों लोक खुशियों से भर गये। जन्म-महोत्सव मनाने हेतु सर्वप्रथम दिशाकुमारियों में हलचल व्याप्त हो गयी है। भगवान के जन्म-समय अधोलोक निवासिनी 1. भोगंकरा, 2. भोगवती, 3. सुभोगा, 4. भोग-मालिनी, 5. तोयधारा, 6. विचित्रा, 7. पुष्पमाला, 8. आनन्दिता ये आठ दिशा-कुमारियां भोगों में निरत बनी हुई थीं। आसन कम्पायमान हुए। भोगंकरा- अरे क्या बात है? आसन कम्पित बन रहे हैं? हां देवि! परिचारिका देवी ने हाँ भरते हुए कहा। अवधिज्ञान से-- भगवान् का जन्म हुआ है भारत में। अरे! हमको भी जाना है जन्मोत्सव मनाने, क्योंकि यह हमारा जीताचार है। भोगंकरा- बुलाओ आभियोगिक देव को। हॉ देवि! अभी बुलाती हैं। सेविका देवी ने कहा। आभियोगिक देव उपस्थित होकर- कहिए क्या आदेश है? विमान तैयार करो। भरंत-क्षेत्र में क्षत्रियकुण्ड में भगवान महावीर का जन्मोत्सव मनाने चलना है। अभी करता हूं।
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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