SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 28 क्या अच्छा? एक पुण्यशाली सन्तान की माँ बनने का सौभाग्य! कब? थोड़ी देर में। सभी परिचारिकाएं सेवा में संलग्न हैं। शनैः-शनैः दाक्षिणात्य मन्द-मन्द पवन के झोंके आने लगे। सभी ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान पर अवस्थित थे। वातावरण बड़ा ही शान्त, प्रशान्त, मनमोहक था। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र गतिमान था। चन्द्रमा का प्रथम योग चल रहा था। दिशाएं सौम्य, शांत, उज्ज्वल प्रकाश से अनुप्राणित बनीं। उसी समय नौ माह साढ़े सात रात्रि व्यतीत होने पर एक सुन्दर, सुकुमार, अभिनव आलोक से अलंकृत बाल-शिशु को महारानी त्रिशला ने जन्म दिया। क्षणभर के लिए दिव्य प्रकाश दसों दिशाओं को आलोकित करने लगा। हर्ष-हर्ष की ध्वनि गूंज उठी। शिशु की किलकारियों से वायुमण्डल खुशियों से भर गया। बधाई हो! बधाई हो! महारानी ने राजकुमार को जन्म दिया है। ऐसा शब्द वायुमण्डल में गुंजायमान हुआ। सब खुशियों से झूम उठे। दासी प्रियंवदा सिद्धार्थ को बधाई देने चली गई। संदर्भः भगवत् जन्म, अध्याय 5 मारवाड़ी महिलाओं के हाथ का गहना विशेष (क) आचारांग; द्वितीय श्रुत स्कन्ध; आचार्य शीलांक वृत्ति; वही; पृ. । 421 (ख) कल्पसूत्र; राजेन्द्र सूरिकृत बालावबोधिनी वातो; मुद्रक-निर्णयसागर यंत्रालय; संवत् 1944 (सन् 1888); पृ. 77 | इसमें कहा है कि उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के तीसरे पाये के साथ चन्द्रमा का योग था। (क) आचारांग; द्वितीय श्रुत स्कन्ध; वही; पृ. 421 (ख) आवश्यक सूत्र; मलयगिरि; पूर्वभाग; वही; पृ. 256 (ग) कल्पसूत्रः राजेन्द्र सूरिकृत वालाववोधिनी वार्ता; वही; पृ. 76 (क) स्थानांग; श्री नगर्पिगणि विरचित, श्री विमलहर्षगणि संशोधित वृत्ति; प्रथम भाग; प्रका. देवचन्द लालभाई; वि. संवत् 2030; स्थान3 ल
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy