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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 222 नगर में पधारे हुए हैं? वे कठोर अभिग्रह लेकर घर-घर भिक्षा के लिए घूम रहे हैं लेकिन उनका अभिग्रह अभी तक फला नहीं है। महीनों हो गये, वे अभी तक भूखे हैं। राजा शतानीक यह सुनकर खेद और विस्मय से बोला- अरे, मुझे अभी तक मालूम तक नहीं चला। वस्तुतः मैं बहुत प्रमादी हूं। तुमने मुझे ठीक समय पर चेतावनी दी है। अब मैं प्रातःकाल ऐसा प्रयास करूंगा जिससे भगवान का अभिग्रह फलित हो जाये और उनका पारणा हो जावे। ऐसा कहकर राजा ने तत्काल मंत्री सुगुप्त को बुलाया और कहा- मंत्रीवर! हमारी नगरी में भिक्षा के लिए भ्रमण करते हुए प्रभु महावीर को चार माह हो गये लेकिन अभी तक उनको भिक्षा नहीं मिली। उन्होंने कोई विशिष्ट अभिग्रह ग्रहण कर रखा है। हमें धिक्कार है कि हम अभी तक उनका अभिग्रह नहीं जान पाये। अब ऐसा प्रयास करो कि शीघ्र ही उनका अभिग्रह फलित हो जाये और मैं उन्हें पारणा करवा सकूँ। मंत्री ने कहा- महाराज उनका अभिग्रह जानने में हम समर्थ नहीं हैं इसलिए मुझे बड़ा खेद है। अतः उसके लिए कोई उपाय करना चाहिए। तब नृपति ने सोचा कि धर्मशास्त्र का ज्ञाता ही अभिग्रह के बारे में बतला सकता है, इसलिए धर्मशास्त्र के ज्ञाता उपाध्याय तश्यकंदी को बुलाना चाहिए। ऐसा चिन्तन कर महाराजा ने तश्यकंदी उपाध्याय को बुलाया और कहा- हे महामति! जिनेश्वर देव ने कैसा अभिग्रह ग्रहण किया है, मुझे बतलाओ। तब उपाध्याय ने कहा कि राजन्! द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से अभिग्रह चार प्रकार के कहे गये हैं। इन भगवान ने जो अभिग्रह ग्रहण किये हैं उन्हें विशिष्ट ज्ञानी के बिना अन्य कोई नहीं जान सकता। तब राजा भी व्यथित हो गये। सोचा परमज्ञानी के अभिग्रह को जानना अशक्य है। बहुत चिन्तन करने के पश्चात भी जब कोई उपाय नजर नहीं आया, तब राजा ने नगरी में घोषणा करवाई कि विशिष्ट अभिग्रहधारी प्रभु वीर जिस-जिस घर में आयें और जो-जो प्रासुक वस्तु आपके घर में उपलब्ध हो वह आप देना ताकि कभी अभिग्रह फलित हो सकता है। लोग राजा की उद्घोषणा श्रवणकर श्रद्धापूर्वक जो भी घर पर प्रासुक वस्तु होती वह प्रभु को देने की भावना भाते, लेकिन भगवान महावीर अभिग्रह फलने
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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