SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर 213 साधनाकाल का द्वादश वर्ष - द्वाविंशति अध्याय - प्रभु महावीर विशालापुरी से विहार कर नगर, ग्राम, द्रोणमुख' आदि स्थानों में विहार करते हुए सुसुमापुर पधारे। वहां अशोक वन नामक उद्यान में, अशोक वृक्ष के नीचे एक शिला पर तेले का प्रत्याख्यान करके एक रात्रि की प्रतिमा धारण कर कायोत्सर्ग में स्थित रहे । इसी रात्रि में चमरेन्द्र के प्रभु शरण में आने की विशिष्ट घटना घटी, जिसका वर्णनक्रम इस प्रकार है भरत क्षेत्र की विध्यांचल तलेट में बिभेल नामक ग्राम था । उस बिभेल ग्राम में पूरण नामक एक गृहस्थ रहता था। एक बार अर्धरात्रि में शयन करते हुए वह निद्रा से जागृत हो गया । जागृत होने के पश्चात् शुभ अध्यवसायों से उसके मन में भाव उत्पन्न हुए कि मैंने पूर्वभव में बहुत तपश्चर्या की हुई है जिससे इस भव में मुझे सत्कार, सम्मान और परिपूर्ण लक्ष्मी प्राप्त हुई है। मुझे अपने आगामी भवों में भी श्रेष्ठ ऋद्धि प्राप्त हो, इसके लिए पुण्योपार्जन करना है। मेरे लिए यही श्रेष्ठ है कि अब गृहवास का परित्याग कर, तपश्चर्या कर अपने आगामी जन्म और जीवन को सुखी बनाऊँ । ऐसा चिन्तन करने पर प्रातःकाल होने पर अपने पारिवारिक जनों से प्रव्रज्या स्वीकार करने की आज्ञा मांगी। अनुमति प्राप्त होने पर मित्र, जाति और स्वजनों को भोजन के लिए आमंत्रित किया । भोजन करने के पश्चात् अपने पुत्र को घर का भार सम्हलाकर स्वयं ने दानामा प्रव्रज्या अंगीकार कर ली और तापस बनकर तपश्चर्या करने लगा । उसने भिक्षा के लिए चार खण्डवाला एक काष्ठमय पात्र ग्रहण कर लिया और प्रव्रज्या अंगीकार करने के पश्चात् निरन्तर बेले-बेले पारणा करने लगा । सूर्य की आतापना लेते हुए अपने शरीर को कृश करने लगा। पारणे का दिन आने पर चार पुट वाला भिक्षापात्र लेकर मध्याह्न काल में भिक्षा के लिए परिभ्रमण करता। पहले खण्ड में आई हुई भिक्षा को राहगीरों को दे देता । दूसरे खण्ड में आई हुई भिक्षा को कौवे आदि को दे देता । तीसरे खण्ड में आई हुई भिक्षा को मत्स्यादि जलचर प्राणियों को दे देता और चौथे खण्ड में आई हुई भिक्षा को
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy