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________________ 164 अपश्चिम तीर्थंकर महावीर ओर ग्रीष्म की अधिकता से समूचा वायुमण्डल उष्ण हो जाता। उस समय भी प्रभु स्वेदरहित खेद को परे रखते थे । धूप से तापित जमीन पर, जहां एक कदम रखने पर भी ऐसा लगता था कि अंगारों पर चल रहे हैं, वहां भीषण तपी हुई भूमि पर समभाव से चलकर प्रभु गोचरी पधारते थे। ग्रीष्म परीषह को समभावपूर्वक सहन करने वाले भगवान तप में भी स्वयं को शांत रखते थे । - ऐसे दुर्गम लाट प्रदेश में भगवान शुभ्र भूमि और वज्र भूमि में पधारे, जहां रहने के स्थान बड़े ऊबड़-खाबड़ थे। वहां की कंकरीली जमीन पर चलना बड़ा ही कठिन था। वहां उस ऊँची-नीची भूमि में अत्यन्त कठोर आसन करके भगवान ने बहुत-से कर्मों का क्षय किया" । वहां के अनार्य लोग, जब प्रभु वीर पधारते थे तो उन्हें देखकर उनका उपहास करते थे। वहां के कुत्ते तीक्ष्ण दांतों वाले, भीमकाय शरीर वाले थे। लोग उन कुत्तों को हू-हू करके बुलाते और वीर प्रभु को कुत्तों से कटवाते थे । वे लोग रूक्षभोजी होने से रूखे स्वभाव के थे । उनके क्रूर स्वभाव के कारण दूसरे श्रमणादि तो लाठी और नालिकादि लेकर ही वहां पर विचरण करते थे । लाठी लेकर चलने वाले उन श्रमणों को भी कुत्ते नोच डालते तब शस्त्ररहित विहार करने वाले प्रभु पर तो वे कुत्ते कितना जबरदस्त आक्रमण करते होंगे ? यह सोचते ही मन में सिहरन पैदा हो जाती है । लाट देश में कभी प्रभु को विहार करते हुए गांव भी नहीं मिलता तब प्रभु जंगल में ही कायोत्सर्ग करके खड़े रहते थे। जब वे जंगल से गांव की ओर पधारते तो ग्रामवासी गांव में घुसने से पहले ही रोक देते, दण्डादि से प्रहार करते और कहते - यहां से कहीं दूर चले जाओ । कभी गांव से बाहर खड़े प्रभु को बहुत से लोग डण्डे, मुक्के, भाले, शस्त्र, मिट्टी के ढेले और ठीकरे से मारते और मारो - मारो कहकर दूसरों को भी मारने के लिए प्रेरित करते थे। प्रभु जब कभी गांव से बाहर ध्यानस्थ खड़े रहते तब लोग उन्हें ऊँचा उठाकर नीचा गिरा देते थे। लोग धक्का मारकर दूर धकेलते थे, कोई धूल फेंकते थे और कोई तो यहां तक जघन्य कृत्य कर डालते कि प्रभु के शरीर का मांस तक काट लेते लेकिन परीषह सहन करने के लिए कटिबद्ध, घोर कष्टों को
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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