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________________ साधनाकाल का चतुर्थ वर्ष अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 152 चतुर्दश अध्याय ने कालाय सन्निवेश में पधार कर साधना के चतुर्थ वर्ष में प्रभु. एक रात्रि की प्रतिमा धारण की। तब गोशालक बन्दर की तरह चंचलता करता हुआ द्वार के आगे बैठा रहा । कालाय ग्राम के स्वामी का सिंह नामक एक पुत्र था। वह यौवनोन्माद में ग्रस्त रतिप्रिय बन चुका था । जिस दिन भगवान महावीर उस खण्डहर में ध्यानस्थ खड़े थे उसी रात्रि में वह सिंहकुमार अपनी विद्युन्मति दासी के साथ रतिक्रीड़ा के निमित्त वहां बैठा हुआ था । वह रात्रि होने पर उच्च स्वर से बोला कि इस शून्यगृह में कोई साधु, ब्राह्मण अथवा मुसाफिर है तो बोलो ताकि हम अन्य स्थान पर चले जायें। प्रभु तो कायोत्सर्ग में स्थित थे, कुछ बोले नहीं। गोशालक भी मौन बना रहा। तब सिंहकुमार दासी के साथ क्रीड़ा करने लगा । तदनन्तर वह जब दासी के साथ बाहर निकलने लगा तो दुर्मति गोशालक, जो द्वार के पास बैठा था, उसने अपने हाथ से दासी के हाथ का संस्पर्श किया' । तब उस दासी ने सिंहकुमार से कहा- स्वामिन्! किसी पुरुष ने मेरा स्पर्श किया है। तब सिंहकुमार ने गोशालक से कहा- धूर्त! तूने छिपकर हमारा अनाचार देखा है। जब वह गोशालक कुछ भी नहीं बोला तो सिंहकुमार ने उसको बहुत पीटा और फिर वहां से चला गया। उसके जाने के बाद गोशालक ने प्रभु से कहा- भगवन्! आपकी सन्निधि में भी मुझे मार खानी पड़ी। तब सिद्धार्थ ने कहा कि तूं हमारे जैसा आचरण क्यों नहीं करता । दरवाजे पर बैठकर चंचलता करता है तो फिर मार क्यों नहीं पड़ेगी? गोशालक ने यह सुनकर चुप्पी साध ली। शेष रात्रि शांतिपूर्वक व्यतीत हुई। प्रभात होने पर प्रभु ने वहां से विहार किया और विहार करके पत्रकाल पधार गये। वहां भी शून्य गृह में एक रात्रि की प्रतिमा धारण कर कायोत्सर्ग में तल्लीन वन गये । इस बार गोशालक ने सोचा, दरवाजे पर नहीं बैठूंगा। क्योंकि वहां बैठने से फिर कोई मेरी पिटाई कर सकता है। इसलिए एक कोने में जाकर बैठ जाऊँ । यो सोचकर वह एक कोने में बैठ गया। रात्रि में उस ग्राम स्वामी का पुत्र स्कन्द भी दंतिला दासी के साथ रतिक्रीड़ा करने
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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