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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर पुष्ट स्कन्ध, उज्ज्वल चतुर्दन्त, मदमस्त चाल से चलते हुए, कपोलों से मद चूते हुए श्वेत हस्ती को आकाश से उतर कर मुख में प्रविष्ट होता देखा यावत् चतुर्दश स्वप्न में धूमरहित उज्ज्वल अग्निशिखा देखी । स्वप्न देखकर मन आह्लाद से परिपूरित हुआ । आप बतलाइये कि इन चतुर्दश स्वप्नों का क्या फल- विशेष प्राप्त होगा ? ये स्वप्न क्या इंगित करते हैं? निमित्त, ज्योतिषादि अष्टांग शास्त्र -- समन्वित समाधान कीजिए" । वे स्वप्नपाठक स्वप्न श्रवण कर चिन्तन, मनन एवं परस्पर विचार-विमर्श करते हैं । करने के पश्चात् निवेदन करते हैं- "देवी! स्वप्नशास्त्र में बहत्तर स्वप्न बतलाये हैं । उनमें 42 (बयालीस ) सामान्य T स्वप्न एवं 30 (तीस) महास्वप्न बतलाये हैं । इन तीस महास्वप्नों में से तीर्थंकर या चक्रवर्ती की माताएं तीर्थंकर या चक्रवर्ती के गर्भ में आने पर 14 (चौदह) महास्वप्न देखती हैं। वासुदेव की माताएं वासुदेव के गर्भ में आने पर चौदह में से सात महास्वप्न देखकर जाग्रत होती हैं। बलदेव की माताएं बलदेव के गर्भ में आने पर कोई चार महास्वप्नों को देखकर जाग्रत होती हैं । माण्डलिक राजा की माता चौदह महास्वप्नों में से एक स्वप्न देखकर जाग्रत होती है 14 | "देवि! आपने जो चौदह स्वप्न देखे हैं वे प्रधान, उत्तम, श्रेष्ठ, मंगलकारी हैं। ये स्वप्न अर्थलाभकारी, भोगलाभकारी, पुत्रलाभकारी, सुखलाभकारी, राज्यलाभकारी हैं। "आप नौ मास साढ़े सात रात्रि पूर्ण होने पर सर्वांग सुन्दर, सुकुमार, पुण्यवन्त बालक का प्रसव करोगी जो महापुण्यप्रतापी होगा और भविष्य में चक्रवर्ती सम्राट अथवा तीर्थंकर बनेगा। आप इस पुण्यशाली सन्तान की जन्मदात्री मां का गौरव प्राप्त करोगी। यह स्वप्नों का वर्णन सुन मातृ - हृदय का अपूर्व वात्सल्य प्रवाहित होने लगा। मेरा लाल कितना पुण्यशाली होगा । मैं भी ऐसे पुत्र की जन्मदात्री जननी बनकर अपना कर्तव्य परिपूर्ण करूंगी। वह दिन धन्य होगा जव ऐसे भाग्यशाली सुत का मुखदर्शन करूंगी। ऐसी वासल्यमयी सरिता में निमग्न मैं अपने कक्ष की ओर चली गयी। - 8 सिद्धार्थ नृपति स्वप्नपाठकों के अर्थ को सुनकर आनन्दविभोर हो उन्हें विपुल प्रीतिदान देकर विदा करते हैं। कितना आकर्षक था,
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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