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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर 117 अस्थिग्राम रखा है। आज भी उस शूलपाणि यक्ष का इतना प्रभाव है कि रात्रि में जो भी व्यक्ति इस मन्दिर में सोता है, उसे वह मार डालता है। इसी कारण पुजारी भी शाम को अपने घर लौट आता है । हे देवार्य आप यहां रात्रि में कैसे रहोगे? वह शूलपाणि आपको जिन्दा नहीं छोड़ेगा | - प्रभु ने ग्रामवासियों से सारी वार्ता सुनी पर वे मौन रहे, क्योंकि वे तो सब कुछ जानते थे। जब सब-कुछ कहने पर भी प्रभु मौन रहे तो ग्रामवासी वहां से लौट गये। कुछ समय पश्चात् पुजारी इन्द्रशर्मा वहां पर आया। उसने भगवान को ध्यानस्थ देखा तो उसने भी वहां पर रात्रि में रुकने का निषेध किया, लेकिन प्रभु ने कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया तो पुजारी लौट गया । सुनसान मन्दिर में एकाकी महावीर ध्यानस्थ खड़े हैं । निरन्तर अन्तर में गमन हो रहा है। आत्मिक खोज में अपना सारा पुरुषार्थ लगा रहे हैं। स्वयं को स्वयं द्वारा पाने का यह परम प्रयास है जिसमें सहज ही प्राप्त उपसर्गो को झेलने की तत्परता है । भयरहित अभय की साधना चल रही है। सारे सम्बन्धों का परित्याग कर मात्र आत्मिक सम्बन्ध जोड़ने में ही संलग्न हैं। रात्रि का वातावरण नीरव होता जा रहा है । पशु, पक्षी और मानव जागरण से निद्रा की दिशा में प्रयाण कर रहे हैं । वहीं भगवान निरन्तर जागरण में लीन हैं । घन्टों पर घन्टे बीत रहे हैं । यामा अपने पूर्ण यौवन की ओर अपने चरण बढा रही है, वहीं परीषह - जयी महावीर अडोल बने हुए स्वयं को निहार रहे हैं । यामिनी का समय और नीरव वातावरण में शूलपाणि का आगमन । शूलपाणि ने देखा - ओह ! आज यह मृत्यु को चाहने वाला मेरे इस निवास स्थान पर आ गया। लोगों ने मना किया, पुजारी ने मना किया फिर भी नहीं माना। इसका अहंकार अभी चूर-चूर करता हूं। ऐसा चिन्तन कर उस व्यन्तर देव ने भयंकर अट्टहास किया। पूरे नगर में भय का वातावरण व्याप्त हो गया। लोग मन में चिन्तन करने लगे, ओह ! लगता है संन्यासी को यक्ष ने मार दिया, लेकिन किसकी हिम्मत जो वहां जाकर अवलोकन करे । यक्ष द्वारा भयंकर अट्टहास करने पर भी प्रभु निष्कम्प बने रहे। तब शूलपाणि ने देखा, अभी तक इसका
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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