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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 114 गृहस्थ के पात्र में भोजन नहीं किया, ऐसा आचारांग सूत्र के मूल पाठ में उल्लेख है तथापि आचार्य मलयगिरी ने ऐसा स्वीकार किया है कि भगवान् ने प्रथम पारणे में गृहस्थ के पात्र में आहार किया। उसके पश्चात्, यह प्रतिज्ञा ग्रहण करने के बाद नहीं किया। मलयगिरी का यह सिद्धान्त शास्त्रसम्मत नहीं है क्योंकि भगवान इस प्रकार का अपवाद सेवन करते ही क्यों? यह टीकाकार की अपनी भ्रान्त मान्यता है इन पंचाभिग्रह को धारण कर प्रभु मोराक सन्निवेश से विहार कर संध्या गोधूलि वेला में अस्थिग्राम पधारे। अस्थिग्राम में शूलपाणि यक्ष का एक यक्षायतन था। वहां शेष वर्षावास बिताने हेतु ग्रामवासियों से यक्षायतन की याचना की। तब लोगों ने कहा- इसमें रहने वाला शूलपाणि यक्ष रात्रि में किसी भी व्यक्ति को जीवित नहीं छोड़ता। तब आप कैसे रह पायेंगे? फिर भी प्रभु ने कहा- मैं यहीं रहना चाहता हूं। तब लोगों ने आज्ञा तो प्रदान कर दी परन्तु सभी के दिलों में भय था कि यक्ष इस संन्यासी को समाप्त कर देगा। तब वहां के लोग शूलपाणि यक्ष की रोमांचकारी कथा सुनाते हुए प्रभु से कहने लगे- महात्मन्! अभी आपको शूलपाणि के बारे में कुछ पता नहीं है। हम इसकी कहानी सुनाते हैं। प्राचीन काल में यह वर्द्धमान नामक शहर था। यहां वेगवती नामक एक नदी थी। वर्षा की अल्पता से नदी का पानी सूखता चला गया और नदी के दोनों किनारों पर कीचड़ हो गया। एक बार धनदेव नामक एक व्यापारी पांच सौ गाड़े माल के भरकर लाया लेकिन वे गाड़े कीचड़ से पार कैसे पहुंचे? सभी बैल इतने समर्थ नहीं थे कि वे गाड़े पार पहुंचा सकें। उस व्यापारी के पास एक धोरी वृषभ था । उस वृषभ ने पांच सौ गाड़े कीचड़ से पार करा दिये। यद्यपि उस बैल ने मालिक की सहायता कर दी लेकिन खुद का शरीर जबाब दे चुका था। अस्थिपंजर ढीले पड़ गये। एक कदम भी चलना भारी था । श्वास भर रहा था। मुंह से रुधिर निकलने लगा और वह बैल वहीं पर गिर पड़ा। तब व्यापारी धनदेव ने चिन्तन किया कि मेरी अथक सेवा करने वाला यह बैल अब एक कदम भी चलने में समर्थ नहीं है। इसने तो अपना उत्तरदायित्व श्रेष्ठ रीति से निभाया है। अब मेरी वारी है, लेकिन इस
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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