SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 92 हुई प्रतीत होती थी। उसकी वह मधुर वाणी सहज आकर्षण का केन्द्र थी। प्रलम्ब भुजबल और तनु कटि–भाग गात्र को कमनीय बना रहा था। गजहस्ती-सी चाल और अरुणाभ नख अभिनव आभा विकीर्ण कर रहे थे। शारीरिक सौन्दर्य के साथ-साथ मन भी सुन्दर भावों का आगार था। विवाह के पूर्व ही यशोदा ने संकल्प कर लिया कि जिस किसी के साथ विवाह करूंगी, उसी पुरुष की आज्ञा में अपना जीवन समर्पित करके रहूंगी। इसी समर्पण भावना से उसने कुमार वर्धमान को अपनाया । वह सोचती है कि इसी समर्पणा से वर्धमान को जीत लूंगी और वर्धमान, वे जानते हैं कि लुभावने संसार के आकर्षण ही कर्म शृंखला को आबद्ध करने वाले हैं। दोनों ही अपने-अपने मन में कल्पनाएं संजोये, एक-दूसरे के आमने-सामने बैठे हैं। आखिर मौन तोड़कर बोले........ यशोदा! स्वयं का पाना ही परिणय की सार्थकता है। हां स्वामिन्! वही पाने हेतु आपकी सन्निधि मिली है। तो क्या कभी चिन्तन किया कि मैं कौन हूँ? कुमार ने पूछा। नहीं.......... नहीं यशोदा ने कहा। तब प्राप्त करना सार तत्त्व को। देखना शरीर पिण्ड के भीतर कौन बैठा है? हां स्वामिन्! जरूर करूंगी। क्या वही प्रियतम् होगा? यशोदा ने पूछा। हां यशोदे, वही अजर, अमर, शाश्वत और प्रियतम है। उसे ही एक बार निहार लो तो फिर प्रियतम् से साक्षात्कार हो जायेगा।। अच्छा! स्वामिन् वैसा ही करूंगी। वार्तालाप करते-करते न जाने कब निद्रा आ जाती है। यशोदा स्वामीनिष्ठा और समर्पण की लौ बनकर वर्धमान के मन-आंगन को प्रकाशमान करने में तत्पर है। वह कुमार के प्रत्येक कार्य को स्वीकार कर प्रतिकार की स्पर्धा से परे है। वर्धमान की जीवनसंगिनी बनकर भी अधिकार की पैनी धार से विलग है। इन्हीं प्रयासों से वर्धमान का मन जीतने का स्तुत्य प्रयास किया। नारीत्व से मातृत्व की यात्रा करते हुए एक पुत्रीरत्न को जन्म दिया। राजा सिद्धार्थ और त्रिशला अपनी पौत्री को प्राप्त कर आनन्द निमग्न बने। उसका यथाविधि
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy