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________________ ७४ हाँ तो चलिये, उसके कुछ और उदाहरण ले .-बहुत से लोगो का यह कहना है, वे मानते है और लोगो को मनाते भी है कि हमे ढाल के दोनो पहलुनो की ओर देखना चाहिये | लेकिन उनकी दृष्टि उन दोनो पहलुओ से प्रागे नही जाती । यदि हम ढाल के बारे मे अधिक सोच-विचार करेगे तो उसके आगे तथा पीछे के, इस तरह दो पहलुओ के प्रतिरिक्त जिस धातु से वह वनी है तथा उसके बनाने वाले के बारे मे विचार हमारे मस्तिष्क मे ग्रवश्य जागृत होगे । ढाल निर्माण करने वाले कारखाने का चित्र भी हमारे सम्मुख उपस्थित हो जायगा | थोडा-सा और विचार करने पर उस ढाल का उपयुक्त स्थान तथा उसका उपयोग करने वाले की ग्रावश्यकता हमारी दृष्टि के सामने थाएगी। युद्ध का मैदान, भोपण हत्याकाड तथा मनुष्यो की शूर-वीरता आदि के अनेक चित्र हमारे मन प्रदेश मे प्रस्तुत होगे जिन पर विचार करने से हमे बहुत कुछ जानकारी प्राप्त होगी । / एक पेड और एक पहाड़ की वात ले । पेड का तना गोल है । उसका ग्राधा हिस्सा हमे सामने से दिखाई देता है और वाकी का आधा हिस्सा देखने के लिये हमे दूसरी ओर जाना पडता है। लेकिन उसके गोलाकार दो पहलुओ के अतिरिक्त भी उस पेड के भीतर बहुत कुछ है । 'तने का खोखला, पेड़ की जडे वह जमीन जिसके अन्दर जडे गडी हुई है, उस जडो को पोपित करने वाला पानी जो जमीन के भीतर है, उस पेड का सिर, उसकी शाखाएँ, पत्ते,
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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