SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हो ऐसे व्यवहार का, आचरण का इसमे समावेश नहीं होता। उपरोक्त सात 'नय' मे साधारण और विशेष ये दो बाते द्रव्यार्थिक तथा पर्यायाथिक विभाग मे बतलाई गई है, उसमे जैन-तत्त्वज्ञानियो ने विशेष बल देकर याद रखने योग्य जो बात कही है वह यह है कि___ "विशेष से रहित साधारण और साधारण से रहित विशेष ऐसी किसी भी वस्तु का इस जगत मे अस्तित्व नहीं है।" इसका स्पष्ट अर्थ यह हुआ कि ऊपर जो सातो नय बताये गये हैं उन्हें अलग अलग या व्यक्तिगत तौर पर समझ लेने के बाद भी उन्हें एक ही समूह मे गिनना होगा । नय का यह विषय अत्यन्त रसप्रद और समझने योग्य है । इस बारे मे विस्तृत चर्चा हम आगे उचित स्थान पर करेगे। (१६) जैन दार्शनिको ने एक ऐसा कोष्टक भी तैयार किया है, जिसकी सहायता से ऊपर जिन विषयो का उल्लेख किया गया है, उन्हे तथा दूसरे विषयो को हम अच्छी तरह समझ सके। उन्होने इसे 'सप्तभंगी' नाम दिया है । इसी सप्तभंगी मे स्याद्वाद के तत्त्वज्ञान का रहस्य छिपा हुआ है। इस सप्तभगी को देखकर बहुत से लोग भडक जाते है क्योकि पहली बार देखने पर तो उसमे परस्पर विरोधी बाते ही दिखाई देती है । जिन्हे वस्तु के विज्ञान की समझ या ज्ञान नही है ऐसे लोग इस सप्तभगी में प्रयुक्त शब्दावलि को देखकर उलझन मे फंस जाते है । जैन तत्त्ववेत्तानो ने एक अति महत्त्व की बात कही है जिससे इस विषय को हम अच्छी तरह से
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy