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________________ परिचय पिछले प्रकरण मे 'तटस्थ' भावना अपनाने की जो बात वतलाई गई है उसके अनुसार अब आप तटस्थ भावना की स्थिति मे आ पहुँचे है । यह मानकर आगे चर्चा करे । ___ यहाँ पर इस बात का निर्णय कर लेना आवश्यक है कि आखिर हमे समझना क्या है ? अच्छा, एक प्रश्न ही पूछ ले । इस जगत मे क्या ऐसा भी कोई उपाय है जिसकी सहायता से मनुष्य को समझ-शक्ति, छोटे-बडे तमाम क्षेत्रो मे पूर्ण सत्य की खोज कर सके और उसे प्राप्त कर सके ? जैन-दार्शनिको ने इस प्रश्न का उत्तर 'हाँ' मे दिया है। उन लोगो का यह दावा है कि सर्वज्ञ भगवतो ने इस समझ शक्ति को प्राप्त करने का जो मार्ग दिखाया है वह अपूर्व है, अद्भुत है और पूर्ण है। ___यदि हम इस बात को ठीक तरह से समझना चाहते हैं तो जैन-धर्म और जैन तत्त्वज्ञान से सम्बन्धित मुस्य-मुख्य बातो की एक सूची हमे देखनी होगी। महत्त्व को वातो पर एक विहगम दृष्टि डाल कर उनका परिचय हमे प्राप्त करना होगा। क्योकि जो तरीका, जो पद्धति, जो गणित हमे देखना और समझना है, जो उसका मूल है, जो उसके मूलभूत सिद्धान्त एव पाचरण है, उनका सक्षिप्त परिचय हो जाने से उस (तत्त्वज्ञान) को समझने मे हमे अधिक सुविधा होगी।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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