SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ हो वे सभी यथार्थ है या नहीं, इस बारे मे उस चीज का उपयोग किये विना क्या हम निर्णय कर सकते है ? तो फिर जैन तत्त्वज्ञान के बारे मे उसके प्रणेताओ का जो दावा है उसकी यथार्थता का अनुभव प्राप्त करने के लिये एक अवसर उन्हे भी दिया जाय तो उसमे कौन- सी ग्रापत्ति है? यदि सही तौर पर देखा जाय तो वह अवसर हमे उन्हे देना नही है बल्कि प्राप्त करना है, उन्हें ऐसा अवसर प्रदान करने से आखिर मे फायदा तो हमे ही होनेवाला है, उन्हे नही । इसलिये यह तो हमारे ही लाभ की बात हुई । फिर भी फिलहाल उन्हे एक अवसर देना है ऐसा मानकर हम श्रागे चर्चा करे तो इसमे कोई आपत्ति नही । जैन तत्त्ववेत्तागरण हमारा आभार अवश्य मानेगे । जैन तत्त्वज्ञानियों का यह दृढ विश्वास है कि इस सर्वोच्च तत्त्वज्ञान को समझने की जिज्ञासावृत्ति एकबार भी जिनके मन मे जागृत होगी उनके सामने, इस तत्त्वज्ञान का सौदर्य और उसका सौरभ आप ही आप अपने बल से प्रकट हुए विना नही रह सकता । इस बात को समझने के लिये, उस सम्बन्ध मे पूर्णतया अनुभव प्राप्त करने के जिन दुर्गुणो और दोषो का त्याग करने का पहले कहा गया है उनका आज इसी वक्त त्याग करने के लिए कोई आग्रह नही करता क्योकि यदि एक बार इस तत्त्वज्ञान की समझ शक्ति का विकास प्रारंभ हुआ कि आप ही आप सभी दुर्ग अपना बोरिया-बिस्तर लिये भाग- छूटने
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy