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________________ शुद्ध तर्क को सिद्ध करना सभी लोगो के लिये सभव नही । इसलिये हमे उन्ही लोगो का आश्रय लेना होगा जिन्होने अपने समस्त पापो का क्षय करके, इस जगत और जगत के बाहर की तमाम भौतिक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक बातो को, केवल ज्ञान-Omniscuence के द्वारा देखा है और जगत के सामने प्रस्तुत किया है । इन भगवन्तो द्वारा जो कुछ भी बाते कही गई है वे सभी सत्य है या नही इसे सिर्फ जिज्ञासावृत्ति से प्रेरित होकर समझने की कोशिश करे तो वह हमे आगे की ओर दूर-दूर कही अवश्य ले जायगी। छोटे-से बालक को जव सर्व प्रथम स्कूल में दाखिल किया जाता है तब उसे ('चौदह तिया बयालिस' नहीं मालूम होता) गणित का विल्कुल ज्ञान नहीं होता। स्थापित गणितशास्त्र मे विश्वास रखकर, अनपढ माँ-बाप अपने बच्चे को स्कूल मे दाखिल करवा देते हैं । वहा पर शिक्षक बच्चे को जो कुछ भी याद करने के लिये कहता है, वच्चा ठीक उसी तरह याद करता है । 'पन्द्रह तिया पैतालीस' ऐसा जो पहले याद किया होता है उसका उसे शास्त्रीय ज्ञान नहीं होता। बाद मे जव उसकी बुद्धि का विकास होता है, वह जोड, और बाकी करना सीख लेता है, तब वह तीन वार पन्द्रह का जोड कर लेता है, और उसने पहले जो रटा था उसकी यथार्थता का अनुभव उसे तब होता है। ___ जहाँ तक तत्त्वज्ञान का सम्बन्ध है, हम सब बालको जैसे है । प्रारम्भ से ही हम यदि श्रद्धापूर्वक रहना शुरू न करेगे तो
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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