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________________ ३२ अदालत के सामने पेश किये गये प्रमाण, तथा उस सिलसिले में की गई वहस को ध्यान मे लेकर जज साहब, कानून की मर्यादा मे रह कर, स्वयं विलकुल तटस्थता धारण कर, किसी प्रकार के पूर्वग्रह के विना रिश्वत से दूर रह कर, अपनी राय मे जैसा उचित जंचे वैसा ही फैसला सुनाते है। हम यह मान कर ही चलते है कि जज साहव पूर्णतया तटस्थ, तथा न्याय विषयक अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक है। ऐसा होते हुए भी जितने फैसले सुनाये जाते है, क्या वे सव न्याययुक्त होते है ? ऊंची अदालतो मे जव अपील की जाती है, तव, प्राय हम देखते है कि, कई फैसले बदलने पडते है । इस तरह परिवर्तित निर्णय भी पूर्णतया न्याययुक्त हो, ऐसा हमेगा नही होता। वहुधा ऐसी भी शिकायते सुनी जाती है कि न्याय पाने की उम्मीद से अदालत मे जाने वाले कुछ लोगो को न्याय ही नही मिलता । क्या हमने बहुत-से ऐसे भी किस्से नही सुने जहाँ निर्दोष व्यक्ति को दण्ड मिला हो और गुनहगार को रिहा कर दिया गया हो? किसी न किसी झगडे का निपटारा करने के उद्देश्य से ही अदालत की शरण ली जाती है। ये झगड़े भी भिन्नभिन्न प्रकार के होते है और इनके कारण भिन्न-भिन्न होते है। लेकिन विश्लेषण करने पर हमे ज्ञात होगा कि इन झगडो के मुख्य कारण इस प्रकार है
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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