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________________ ४०८ वाले कोई कोई व्यक्ति इस मत्र का आश्रय लेते है । इन पक्तियो के लेखक को ऐसे दो किस्से-सत्य घटनाएँ-मालूम है । किसी स्त्रीविशेष को अपने वश मे करने के लिए सुधबुध खोये हुए दो शक्तिशाली युवको ने इस मत्र की साधना की थी। दोनो को इसमे सफलता प्राप्त हुई थी, और दोनो अपनी अपनी इच्छित रमणियो को वश मे करके उनके साथ शादी कर सके थे । परन्तु वशीकरण मत्र की सिद्धि से पहले ये दोनो स्त्रियाँ अपने अपने प्रेमी युवक को घृणा की दृष्टि से देखती थी। मत्रसिद्धि के बाद मत्रबल से हिप्नोटाइज होकर उन दोनो स्त्रियो ने उन पुरुपो से ब्याह तो किया, परन्तु इसका परिणाम क्या हुआ? एक स्त्री तो मत्र से अभिभूत स्थिति मे केवल कठपुतली बन गयी, और हृदय की उष्मा खो बैठी । उक्त युवक ने जिस सुख की आशा से मत्रसिद्धि का पुरुषार्थ किया था, वह सुख उसे जीवन भर नही मिल सका । और उलटे जोवन भर के लिए उसे महादु ख प्राप्त हुआ। दूसरे किस्से मे स्त्री कुछ अधिक मनोवल वाली थी, इसलिए यद्यपि उसने मत्र के प्रभाव के कारण उस युवक से शादी कर ली, तथापि वह उसे अपना प्रम न दे सकी। इसके बदले उस स्त्री का अपना जीवन नष्ट हो गया। इस घटना में भी एक 'अयोग्य पात्र' को ले आने का दु.ख उस युवक का जीवनसाथी बन गया। उस पात्र मे जिस अयोग्यता ने प्रवेश किया उसका जिम्मेदार वह युवक स्वय ही था-यह बात अभी तक उसके दिमाग मे नही वैठो। इस पर से यह बात सिद्ध होती है कि मनुष्य को मत्र की पसदगी करते समय पूर्ण विवेकबुद्धि से काम लेना
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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