SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८३ के प्रभाव में इसका प्रारम्भ भौतिक जगत् में रह कर ही करना है । उसमें भी म्यादवाद श्रुत का ग्रालम्बन हमे प्रत्यन्त सहायता देगा | परन्तु जीवन जीने का जो मार्ग हमे प्राध्यात्मिक विकास की ओर न ले जाय उस मार्ग से भौतिक क्षेत्र मे भी कोई लाभ नही हो सकता । ऐसे गलत रास्ते जीवन के भटो को बढा देते है । यदि हम जीवन के ध्येय और उसे प्राप्त करने के उपाय के विषय मे पर्याप्त विचार किये विना चले तो गाडी में जुते हुए बैन मे और हममे कोई अन्तर नही रहता । इनका सुस्पष्ट रोति से विचार करके ही हम अपने जीवन का यथार्थ सुयोजन ( Good planning) कर सकते है। ऐसी कोई योजना किये दिना यदि हम चलने लगे तो हमारी दशा फुटवाल जेसी ही होगी । फिर हम जहाँ जाएँगे वहाँ हमे क्या मिलेगा ? झट ही भट | आध्यात्मिक ध्येय से भिन्न कोई भौतिक ध्येय हो ही नही सकता । यदि हम केवल भौतिक सुख सामग्री को ही लक्ष्य मे रखकर जीवन का ध्येय निर्धारित करे तो उससे, ग्राध्यात्मिक सुख तो दूर रहा, हमे भौतिक सुख भी नही मिलेगा । शास्त्रकारो ने जिन्हें आत्मा के शत्रु माना है उन्हें शरीर के मित्र माना ही नही जा सकता । श्राध्यात्मिक विकास मे जो बाधक हो वह भौतिक विकास मे भी सहायक नहीं हो सकता, यह बात हमे अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए । जैन दार्शनिको ने ग्रात्मा के छ शत्रु वताये है, जिन्हे 'पड् रिपु' कहते है । ग्रात्मा के इन शत्रुनो के नाम इस प्रकार है - काम, क्रोध, लोभ, मान, मद, और हर्प । आध्यात्मिक विकास में बाधा डालने वाले ये छ दुश्मन भौतिक विकास मे
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy