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________________ ३७५ यदि युद्ध से शान्ति और सुख प्राप्त प्रथम युद्ध के बाद युद्धों को परपरा भयकर बनाने के लिए उपस्थित न नही, नही, नही होते हो तो विश्व के इतिहास के पृष्ठो को होती । आज जो परिस्थिति है वह तो वहती हुई स्थिति है | सभवत रूस, अमेरिका तथा अन्य देशो के एकत्र किये हुए सहार के साधन काम मे जाएँगे। एक महा विनाश की सृष्टि कर जाएँगे । उसके वाद ? बाद में क्या होगा ? यह वात यदि आज ही समझ मे ग्राजाय तो मानव-जाति महाविनाश से बच जाय । यदि न समझा गया तो ऐसे विनाश की परम्परा जारी रहेगी । वैर से वेर शान्त नही होता । असत्याचरण से शान्ति स्थापित नही हो सकती । चोरी से सस्कार नहीं वनाये जा सकते । ब्रह्मचर्य से कभी सन्तोष होता ही नही । परिग्रह से कभी सुख नही मिलता । हिसा से कभी हिसा शान्त नही होती । आज विश्व मे चारो ओर दृष्टि डाले तो हृदय में एक आघातजनक करुरण भाव पैदा होता है । विचार आता है कि कही हम किसी वडे पागलखाने मे तो नही वस रहे हैं ? किसी स्थान पर ग्राग लगने पर उसे बुझाने के लिए हम पानी लेकर दौडते है । इसके वदले यदि हम घासलेट, पेट्रोल, पटाखे, तथा अन्य स्फोटक पदार्थ लेकर दौडे तो नतीजा क्या हो ? आज दुनियाँ में कुछ ऐसा ही हो रहा है । श्राज की राजनीति तथा अर्थनीति युद्ध को रोकने के लिए युद्ध के घोर विनाशक शस्त्र बनाने के पीछे दौड़ रही है -- श्राखे मूंद कर
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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