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________________ ३६० विडम्बनाएँ या पडेगी या नहीं, इन सब बातो का भी हमे विचार करना ही चाहिए। इस प्रकार विचार करने से उसके दो परिणाम निकलगे। ___ एक तो यह कि मिले हुए मुख से उन्मत्त होने के बदले हम उसका विवेक-पूर्वक उपभोग कर सकेगे। दूसरा यह कि हम इस मुख के बाद पाने वाले दुख को या तो दूर हटा सकेगे या उसे हँसते-हँसते झेलने के लिए अपने आपको कटिबद्ध कर सकेगे। इसके अतिरिक्त हमारे भीतर अपने सुख मे से दूसरे को हिस्मा देने को परम उपकारक वृत्ति भी उत्पन्न होगी। इस प्रकार से विचार करने की राह भी हमे 'स्याद्वाद' मे से मिलेगी। ___ कई बार हम परिवार के लोगो, मित्रो तथा स्नेही जनो के वर्ताव से रज का अनुभव करते है, उदास हो जाते हैं । उस समय यदि हम उनकी और अपनी धारणा के अन्तर की जाँच करे, उक्त स्थिति उत्पन्न होने के कारणो की खोज करे, और उन्हें दूर करने के उपाय सोचे तो हम मतभेद की इस मनोव्यथा से मुक्त हो सकते हैं। ऐसा विचार करने का मार्ग भी हमे 'स्याद्वाद', बतलाता है । ___'स्याद्वाद' सिद्धान्त का स्थापित अर्थ यह है कि किसी भी वस्तु या विपय के एक से अधिक पहलू होते है । 'स्याद्वाद' को शिक्षा का मध्य बिन्दु यह है कि किसी भी वात पर विचार करते समय उस एक ही पहलू पर सोच कर रुक जाना नही चाहिए। एक के बदले दो पहलुओ का विचार करने के विषय मे एक बडा सुन्दर दृष्टान्त है । यह दृष्टान्त वडे मनोरजन के साथ
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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