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________________ ३३५ पर ही मोक्ष प्राप्त होता है । जब आत्मा मोक्ष में जाता है और अपने अधिकार का स्थान प्राप्त कर लेता है तब कर्मव्यापार के कोई कारण शरीर इन्द्रियाँ और मन-उसके साथ नही होते । वहाँ उसका जो शुद्ध चिदानन्द स्वरूप है, जो परमात्मस्वरूप है, केवल वही रहता है । जो महात्मा मोक्ष प्राप्त करके परमात्मा बनते है, उनमे सिद्ध और तीर्थकर (अरिहत)-ये दो भेद है। सिद्ध परमात्मा अपने पाठो कर्मों को क्षय करके मोक्ष प्राप्त करते है, जव कि अरिहत परमात्मा प्रथम चार घाती कर्मों को क्षय कर केवलजान प्राप्त करके तीर्थकर वनते हैं, और वाकी के चार अघाती कर्मो का भय होने से मोक्ष मे जाने का समय आवे, उससे पहले कुछ काल तक इस विश्व मे जगत के जीवो को सच्चा मार्ग बताने का अमाधारण लोकोत्तर उपकार करते है। अव हम ऐसे परम उपकारक श्रीतीर्थकर परमात्मा को वन्दन करके विकासक्रम की जिस श्रेणी के द्वारा उन्होने मोक्ष प्राप्त किया और हमे मार्ग बताया उन चौदह गुणस्थानको का सक्षिप्त परिचय प्राप्त करेगे। (१) मिथ्यात्व गुणस्थानक यह आत्मा के विकासक्रम की प्रथम श्रेणी है। जिन्हें सम्यग्दृष्टि प्राप्त नहीं हुई, आत्मकल्याण के सत्यमार्ग की तथा तत्सम्बन्धी सच्चे साधनो की जिन्हें जानकारी नहीं है, और जो अनेक प्रकार के अजान तथा भ्रम लिए फिरते है, उन सब आत्माओ को गुणवत्ता की यह प्रथम कक्षा है। इस गुणस्थानक मे उन साधुसन्तो का भी समावेश होता है जो लौकिक दृष्टि से उच्च कोटि के आत्मा माने जाते है।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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