SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१० वरिंगत शरीर आदि अग एक दूसरे से भिन्न है यह तो निश्चित है । यह जो 'मे' है वही 'श्रात्मा' है । जड शरीर में रहा हुआ जो चैतन्य स्वय को 'में' नाम से पुकारता है वही ग्रात्मा है । इसका यह अर्थ हुआ कि ग्रात्मा माने 'में' । इसी प्रकार आत्मा जिस जिस को 'में' अथवा 'मेरा' कह कर पुकारता है, उसमे भी उक्त 'में' रहा हुआ होने के कारण हमे उस गरीर को भी 'मैं' अथवा 'आत्मा' कह सकते हैं । ध्यान मे रखना चाहिए कि यह एक सापेक्ष वात है । आत्मा के विषय मे पहले जो थोडा सा वर्णन ग्रा चुका है, उसमे हमे ग्रात्मा के दो मुख्य स्वरूप जानने को मिले । एक मुक्त ग्रात्मा, तथा दूसरा कर्म बद्ध ग्रात्मा । अव ग्रात्मा जब तक जड पुदुगलो के समूहरूप शरीर मे वधा हुआ है तब तक वह कर्म बद्ध आत्मा ही है, यह स्पष्ट हो गया । जो आत्मा अपने सभी कर्मो का क्षय करके 'मुक्त' हो गया, उसे तो 'मे' 'मेरा' जैसा कुछ नही रहता । अतः जव हम ग्रात्मा के विषय मे विचार करते हैं तब शरीर में वन्द कर्म-वद्ध आत्मा का ही विचार करना होता है । इसका अर्थ यह हुआ कि जव आत्मा 'मैं' कहता है, तब, वह मुक्त आत्मा नही अपितु कर्म बद्ध आत्मा है | इन कर्मो ने आत्मा को किस प्रकार और किस जगह बांधा है ? तत्त्वज्ञानियों ने इसका उत्तर इस प्रकार दिया है, "कर्म का आत्मा के साथ सम्बन्ध दूध और पानी जैसा है ।" जव कर्म का वध ( बंधन ) होता है, इस बध के कारण आत्मा
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy