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________________ ग्रात्मा का विकास-क्रम 1 पिछले प्रकरण मे हम कर्म-विषयक विचार कर चुके है । कर्म और ग्रात्मा के बीच का सम्वन्ध अनादि है, यह बात भी हम समझ गये है । अव हम आत्मा के विषय मे भी थोडा विचार करेगे । 'आत्मा' माने क्या ? कौन ? एक मित्र से मिलने के लिए उनके घर जाकर देखा तो दरवाजा वन्द है । भीतर से मित्र तथा उसके परिवार के लोगो के श्रानन्दमय वार्तालाप की आवाज ग्राती है । हम अपनी उपस्थिति की सूचना देने के लिए दरवाजा खटखटाते है | "कौन है ?" अन्दर से प्रश्न पूछा जाता है । "मे हूँ, चन्दुभाई" दरवाजा खटखटाने वाला उत्तर देता है | इस उत्तर का अर्थ होता है, दरवाजा खटखटाने वाला "मे" हूँ, और यह 'मै' चन्दुभाई के नाम से पहचाना जाता है । इसमे 'चन्दुभाई' तो उक्त 'मे' का नाम निक्षेप है । इस प्रकार भिन्न भिन्न नामो से पुकारे जाने वाले सभी सज्जनो के जो नाम हैं उनमे से प्रत्येक एक 'मैं' का नाम है । प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए 'मैं' शब्द का प्रयोग करता है । तो अव प्रश्न यह उठता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए जो शब्द प्रयुक्त करता है वह 'मैं' कौन है ? वोलने का कार्य जीभ करती है, दरवाजा खटखटाने का कार्य हाथ करता है, प्रत्येक इन्द्रिय जब जव जो जो काम करती है तव प्रत्येक वार
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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