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________________ २६१ यात्मा और कर्म के बीच का सम्बन्ध भी लगभग उक्त वैज्ञानिक पोर फे केन्स्टीन के सम्बन्ध के समान है। प्रात्मा स्वय राग द्वेप ग्रादि कपायो के कारण, खुद सुखी वनने और दूसरो को दुखी बनाकर अानन्द पाने के लिए कर्म के जड पुद्गलो को अपनी ओर खीचता है। परन्तु वाद मे चल कर ये ही पुद्गल, प्रात्मा के खुद के ये ही कर्म उपर्युक्त यत्र-मानव फे केन्स्टीन की तरह आत्मा की शक्तियो को नष्ट कर देते है, कुठित कर देते है । व्यवहार मे ऐसा जो कहा जाता है कि 'हाथ का किया, हृदय में लगा' सो ऐसी ही बात है। ____उक्त वैज्ञानिक मे और आत्मा मे बडा अन्तर यह है कि वैज्ञानिक (उसका शरीर) मर गया, जब कि आत्मा मरता नही । वैज्ञानिक तो मरने के बाद फ्रेवेन्स्टीन के त्रास से मुक्त हो गया, परन्तु अात्मा कर्म-रूपी फेकेन्स्टीन से नहीं छूटता । वह जहाँ भी जाता है, कर्म उसके साथ ही जाते है । अथवा यो भी कह सकते है कि कर्म यात्मा को जहाँ जाने की इच्छा हो वहाँ उसे जाने देने के बदले दूसरी ही जगह घसीट कर ले जाता है। परन्तु उक्त वैज्ञानिक मे और आत्मा में एक दूसरा वडा अन्तर है। यत्र-मानव बनाने के बाद उससे कैसे वचना, यह बात वैज्ञानिक को मालूम नहीं थी, जवकि, आत्मा यह जान सकता है कि कर्म से केसे मुक्त हुअा जाय । यह उसका स्वभाव गत जान (Inherent Knowledge) है। आत्मा जब कर्म के प्राबल्य के कारण उससे मुक्त नही हो पाता उस समय भी यह जान सकता है कि 'उससे छूटा जा सकता है।' कर्म की प्रबलता के कारण कभी ऐसा भी
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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