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________________ २५० सात कथन-अभिप्राय-दिये उन सबने मिलकर वैरिस्टर चक्रवर्ती की उदारता विषयक एक सम्पूर्ण चित्र निर्माण किया। वैरिस्टर चक्रवर्ती की उदारता क्या है, क्या नहीं है, कहाँ है, कहाँ नहीं है, कव है, कव नहीं है, उसका लाभ मिल सकता है या नहीं, यह लाभ किसे मिल सकता है और किसे नही मिल सकता, किन परिस्थितियो मे मिल सकता है और किनमे नही, कब मिल सकता है और कव नही, आदि आदि सारे पहलुओं को स्पष्ट करने वाली सारी वावतो का निरूपण चतुर्भुज भाई के सामने इन सातो भगो से प्राप्त भिन्न-भिन्न उत्तरो के द्वारा तथा इन सव उत्तरो के योगफल के द्वारा प्रकट हो जाता है । यहाँ हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि इस प्रकार निर्मित सम्पूर्ण चित्र हमारे पूर्व परिचित 'स्यात्' शब्द के अधीन है, क्योकि यह सम्पूर्ण चित्र भी अपने प्रत्येक अगोपाग की अपेक्षा के अधीन है । इम चित्र मे अपेक्षाभाव से एकत्वे और अनेकत्व-दोनो निहित ही है। ___ ऊपर हमने वैरिस्टर चक्रवर्ती की उदारता का जो दृष्टात देखा उसमे कोई वाल की खाल निकालने वाला शायद इधर उधर कही कोई वाधा या उज्र खडा करे, यह वात असभव नही है । परन्तु हमे यह न भूलना चाहिए कि यहाँ हमने सप्तभगी की व्यावहारिक उपयोगिता बताने के शुभ हेतु से एक पात्र की कल्पना द्वारा एक चित्र प्रस्तुत किया है । मुख्य प्रश्न तो इस रीति से विचार करने अर्थात् वस्तु के भिन्न भिन्न पहलुनो को जांचने का अभ्यास करने का और इस प्रकार हमारी तुलना शक्ति को साफ और मजबूत बनाने का है। इसमे सन्देह नहीं कि यह उद्देश्य यहाँ पूर्णतया सुरक्षित रहा है।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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