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________________ अर्थात् उदारता के लिए 'पर-द्रव्य, पर-क्षेत्र, पर-काल, और पर-भाव-हुआ । इस तरह ऊपर दिये गये स्वचतुष्टय को अपेक्षा से बैरिस्टर चक्रवर्ती उदार है और पर-चतुष्टय की अपेक्षा से वैरिस्टर चक्रवर्ती उदार नहीं है । अव हम इस उदारता-रूप वस्तु को सप्तभगी के सात पदो के अनुसार परखे । प्रथम भंग-बैरिस्टर चक्रवर्ती उदार है। दूसरा भग -वैरिस्टर चक्रवर्ती उदार 'नही है। तीसरा भग -वैरिस्टर चक्रवर्ती उदार हैं और नही है । चौथा भग --बैरिस्टर चक्रवर्ती की उदारता 'प्रवक्तव्य है'। पाँचवा भग-वैरिस्टर चक्रवर्ती की उदारता है और अव क्तव्य है। छठा भग-बैरिस्टर चक्रवर्ती की उदारता 'नही है और प्रवक्तव्य है। सातवॉ भग.-वैरिस्टर चक्रवर्ती की उदारता है नही है और अवक्तव्य है।' हमे यह मान कर ही चलना है कि इन सातो पदो मे हमारे पूर्व परिचित दो शब्द 'स्यात्' और 'एव' हैं ही । अत ऊपर के सातो कथन सापेक्ष और निश्चित है।। अव हम इस बात की जाँच करेगे कि व्यवहार मे वैरिस्टर चक्रवर्ती की उदारता उपर्युक्त सात पदो की सात अलग अलग दृष्टियो से क्या काम करती है ? इस जाँच के हेतु हम 'चतर्भुज' तथा 'गगाधर' नामक दो सज्जनो को इस 'सप्तभगी-समारभ' मे दाखिल करते है। ये दोनो सज्जन वैरिस्टर साहब की उदारता का लाभ
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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