SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .३४ नीयत पर भी निर्भर है, अतः इन सब अपेक्षाओ के अधीन होने के कारण इस प्रश्न का स्पष्ट जवाब नहीं दिया जा सकता । अतएव नागजी भाई की पूजी के विषय में पूछे जाने वाले प्रश्न के उत्तर मे है, नहीं है, और प्रवक्तव्य है' ऐसी एक मात्र सम्पूर्ण वात यदि हम कहते हैं, तो वही पूर्णतया यथार्थ चित्र प्रस्तुत करेगी। इस प्रकार भिन्न भिन्न अपेक्षायो के कारण स्वचतुष्टय, परचतुष्टय तथा स्व-परचतुष्टय की युगपत् कथन से सबधित अपेक्षात्रयो के अधीन रह कर सातवे भग के द्वारा यही एक सम्पूर्ण और स्वतन्त्र बात कही जा सकती है कि "धडा तथा फूलदान है, नहीं है और प्रवक्तव्य है।" सातवे भग मे भी 'स्यात्' तथा 'एव' ये दोनो शब्द हैं, अत: सातवाँ कथन भी निश्चित और सापेक्ष है । यह हमारी सातवी और अन्तिम जिज्ञागा का बहुत ही सुन्दर उत्तर है। सातों कसोटियाँ एक साथ ऊपर हमने सात भगो के द्वारा वस्तु के धर्म के विषय मे सात भिन्न भिन्न निर्णय किये । ये सातो स्पष्ट, निश्चित और स्वतत्र होते हुए भी इनमे से प्रत्येक कथन मे वस्तु का सपूर्ण चित्र नही है । इन सातो को यदि हम स्वतत्र रहने दे और प्रत्येक को यदि वस्तु का सम्पूर्ण चित्र मान ले तो हमारी यह मान्यता 'ऐकान्तिक' और अशुद्ध मानी जाएगी । यह सव वस्तु की अनेक धर्मात्मकता समझने के लिए हम उसे 'अनेकोत' के द्वारा जाँच रहे थे । अत सपूर्ण चित्र तो हमे तभी प्राप्त होगा जब सातो कसौटियो के द्वारा हमने जो अलग अलग स्वरूप देखे है
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy