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________________ २१८ । तो - वह फूलदान मिट जाता है चारो अपेक्षाओ को साथ रख कर तिस पर भी हम तो इन करते है कि ही निर्णय 'फूलदान नही है ।' इस सब पर भली भाँति विचार करने पर हमे स्पष्टतया समझ में आएगा कि 'स्व' की अपेक्षा से घड़ा था - वह 'पर' की अपेक्षा से नही रहता । फूलदान का की अपेक्षा पर निर्भर था और 'पर' की करने पर वह 'नास्तित्व' बन गया । प्रस्तित्व भी 'स्व' ग्रपेक्षा से विचार यह दूसरी कसोटी हमसे कहती है कि १) तांबे की धातु ( पर द्रव्य ) की अपेक्षा से घड़ा नही है । - २ ) प्रदर के खड ( पर क्षेत्र ) की अपेक्षा से घड़ा नही है । ३) अगहन महीने ( परकाल ) की अपेक्षा से घड़ा नही है । ४) हरे रंग ( पर भाव ) की अपेक्षा से घडा नही है । इसी तरह से उक्त फूलदान भी मिट्टी का नही है दीवानखाने के बाहर नही है, उसमे जिस समय फूल न हो उस समय नही है, और जब दीवानखाने की शोभा में वृद्धि नही करता तब भी नही है । इस प्रकार इस दूसरी कसौटी के द्वारा परखने पर हमे मालूम हुआ कि घडा और फूलदान नही है । जहाँ तक इस कसौटी ( भग ) का सबंध है, यह एक निश्चित बात हो गई । 'स्यात्' शब्द इस दूसरे भाग मे भी इस निर्णय की सापेक्षता सूचित करता है, और 'एव' शब्द करता है । निश्चित-भाव प्रकट
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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